Tuesday, June 24, 2014

महिलाओं की सुरक्षा ?

हाल में हुए आम चुनावों में महिलाओं के खिलाफ हिंसा को बड़ा मुद्दा बना कर वोट हासिल करने की योजना बनाई गयी जो अंतत नहीं चल पायी, जिसकी वजह से यह मुद्दा बड़ा ही सवालिया निशान बन सामने आया है। कई मुख्य राजनैतिक पार्टियों द्वारा ''महिलाओं की सुरक्षा'' को लेकर बड़े बड़े वादे किये गए लेकिन हकीकत यही है की देश भर में होने वाली इन तमाम हिंसक घटनाओं के बाद भी ''महिलाओं की सुरक्षा'' के नाम पर तुरंत कुछ नहीं किया गया, इससे इतना तो साफ़  हो गया की किसी  भी कानून को प्रभावी बनाने और उसके श्रेष्ठतम उपयोगी होने के लिए उसपर राजनैतिक दवाब होना बहुत जरुरी है। यानी मान लेना चाहिए की इस तरह के हिंसक मुद्दे तभी प्रभावित होंगे जब यौन-हिंसा भयावह और घिनौना रूप ले लेगी, जब बात हत्या और दिल दहलाने वाली होगी। मतलब किस हद तक पहुंचे अपराध कि तब उस पर कानून सख्ती से लागू किया जा सकेकिस हद का इंतज़ार है कानून को ?

16 दिसंबर की वीभत्स घटना के बाद जैसे बलात्कार और इस तरहा की हिंसक घटनाओं का एक दौर चल पड़ा। हर दिन बलात्कार और हत्या की घटनाएँ सुनने को मिलती रहती हैं। कई बार सोचने  को मज़बूर हो जाती हूँ की क्या हो गया है  लोगो को एक-के-बाद-एक घटनाएँ जैसे सभी सिलसिलेवार हो और क्यूँ किस लिए? अपराधियों को कानून का खौफ़ नहीं सताता बल्कि अब तो यह लगता है जैसे अपराधियों के मन में यह बात साफ़ है कि सज़ा मिलेगी तो क्यूँ न गवाह यानी उस वजह को ही ख़त्म कर दिया जाए ... बाकी जो होगा देखा जायेगा और यही सोच रख आज बलात्कार और हिंसक घटनाओं के बाद कभी गला घोंट, कभी जला कर और कभी पेड़ों पर फांसी दे कर अभियुक्त की हत्या कर दी जाती है।

बलात्कार की बढती घटनाएँ एक ओर कानून व्यवस्था प्रश्न चिन्ह लगा रही हैं तो दूसरी ओर समाज में बढ़ती ऐसी प्रवृति एक खतरनाक संकेत है।

बलात्कार और सामूहिक बलात्कार और अब बलात्कार के बाद हत्या रोज़ होने वाले महिलाओं पर अत्याचारों की चरम सीमा है उसके वावजूद कानून सोया है, निष्क्रिय है, अँधेरे में तीर चलता और निर्दोषों को परेशान करता, अपराधियों संग सुस्त रवयियाँ लिए खामोश है और इस इंतज़ार में है की कब फिर कोई नयी घिनोनी घटना घटित हो जो इस उधडी परत को फिर ढक सके ..........अफ़सोस है ......बेहद अफ़सोस .
इन सब मामलों में उत्तर प्रदेश सुर्ख़ियों में है लेकिन ‘’राष्टीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो’’ के अनुसार 2012 में महिलाओं के खिलाफ हिंसा में अप्रत्याशित रूप से पश्चिम बंगाल सबसे आगे है, आंध्र प्रदेश दूसरे और उत्तर प्रदेश तीसरे नंबर पर है और इसके बाद मध्य प्रदेश और राजस्थान है. जबकि मध्य प्रदेश बलात्कार के मामलों में सबसे आगे है जिसके बाद क्रमवत राजस्थान, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र है परन्तु इसमें यह भी बताना चाहूंगी कि कई मामले जो थाने में रिपोर्ट लिखने में मनाही से महिलाओं के विरुद्ध हो रहे अपराधों के आंकड़ों को काम कर देता है।  ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक उत्तर प्रदेश महिलाओं के खिलाफ हो रही हिंसा की घटनाओं के प्रतिशत को बढ़ाता जा रहा है जिसमें अपहरण, घरेलू हिंसा, दहेज उत्पीड़न और बलात्कार मुख्य है।
उस पर नेताओं से मिली शह ऐसी घटनाओं को बढ़ावा देती है जिसमें उदहारण स्वरूप समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह की इस टिप्पणी से स्पस्ट होता है ''लड़कों से गलतियां हो जाती हैं और उन्हें मौत की सजा नहीं होनी चाहिए''। इस तरह बयान ऐसी विकृत घटनाओं को और प्रोत्साहित करते है जबकि यही वह नेता है जो चुनाव के वक़्त घर-घर जा कर महिलाओं और बेटियों को सुनहरे भारत का भविष्य बताते है और महिला सुरक्षा की बात करते है।
शुरू से ही महिलाओं को कमज़ोर और अबला कह कर उन्हें बेचारा बना दिया गया और एक तरफ यह भी कहा जाने लगा की स्त्री-पुरुष सामान है और आज कंधे से कन्धा मिला कर चल रहे है और यही स्थति निम्न सोच के पुरुषों को खटकती है जो यह विचारते है कि स्त्री पैर की जूती और आज सर पर बैठी है बस यही उन्हें बर्दाश्त नहीं होता जो एक आगे चल कर बदला, खिज़ बन हिंसा के रूप में महिलाओं को भुगतना पड़ता है.

कई बार आर्थिक रूप से पिछड़े परिवार और जाति की मौजूदा स्थति में महिलाएं ही हिंसा की ज़्यादा शिकार होती है। ताज़ा घटनाओं को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि आज भी गावों और पिछड़े इलाकों में ठाकुरवाद जोरों पर है जो जोर-ज़बरदस्ती कर महिलाओं को अपना शिकार बनाते है और अपने डर के चलते कानून से बच भी जाते है .

अभी एक आम धारणा है कि कुछ नहीं होगा, कैसे न कैसे मामला निबट ही जायेगा ! इसको तोडना जरुरी है और ये टूट सकता है कानून को सख्ती से लागू करके जिसकी जिम्मेदारी सीधे-सीधे सरकार और सरकारी तंत्र पर है। सरकार और सरकारी तंत्र कमर कस ले तो स्थिति बदलेगी जिसमें फास्ट ट्रेक अदालत इस प्रयास का एक महत्वपूर्ण अंग बन सामने आयी है। आखिर इन सब घटनाओं को रोकने का क्या समाधान हो सकता है? वास्तव में ये घटनाएँ देश में नैतिकता के तेज़ी से हो रहे पतन और पश्चिमी देशों की अपसंस्कृति के बढ़ने को दर्शाता है लेकिन इस बारे में बलात्कार हमारे देश से भी कहीं ज्यादा पश्चिमी देशो में है केवल आंकड़ों को ही मापदंड नहीं कहा जा सकता है. लगता है जैसे अपराधियों में कानून का डर खत्म हो चुका है और हो भी क्यूँ न जब उनके समर्थन में जाने माननीय लोग शामिल हो जायें......शर्मनाक है यह सब .....बेहद शर्मनाक ...

बलात्कार होना सिर्फ एक महिला के लिए ही नहीं वरन समस्त समाज के लिए एक शर्मनाक हादसा है चूँकि हम सभी समाज के विभिन्न अंग है और इस समाज में होने वाली घटनाएँ हम सभी को यह सोचने पर मज़बूर कर देती है की कल को यही घटना हमारे साथ भी होगी। समाज के केन्द्र में परिवार का मुख्य स्थान है जिसके लिए कहा जाता है की ‘’परिवार की प्रत्येक मनुष्य की पहली पाठशाला है’’ तो ज़ाहिर है बच्चे अच्छा बुरा सब सबसे पहले परिवार से ही सीखते है और वही अपनाते है तो क्या यह ज़िम्मेदारी हमारी नहीं कि हम अपने बेटों को यह शिक्षा दें, कि जिस प्रकार एक स्त्री माँ और बहन की तरह तुम्हें प्यारी है, तुम्हारे लिए सम्माननीय है, उसी प्रकार दूसरी लडकी, महिलाएं भी सम्मान के योग्य हैं, जिस तरह एक भाई अपनी बहन, अपनी माँ और अपनी पत्नी की रक्षा करता है क्या वह समाज में रहते हुए दूसरी लड़कियों, महिलाओं की रक्षा नहीं कर सकता या कम से कम उन पर हो रहे अत्याचार को वो होने से रोकने में मदद कर सकता है। यही बात महिलाओं पर भी लागू होती है दूसरे के साथ हो रहे गलत को अनदेखा न करके उसकी मदद के लिए आगे आये और महिलाएं भी इस बात का ध्यान रखे की उनके साथ अनुचित हो सकता है कहीं भी कभी भी इसलिए सतर्क रहे और परिवार को बता कर या किसी को सूचित कर अपने स्थान से दूर जाए .

बलात्कार जैसी घटनाओं का इस कदर तेज़ी से बढना यही दर्शाता है कि हमारे संस्कारों में ही कमी है जैसा मैंने कहा की बलात्कार सम्पूर्ण समाज के लिए शर्मनाक घटना है यानी हमारी परवरिश में कमी है हमें अच्छी सीख नहीं मिली, हम साथ रह कर भी एक दुसरे के साथ होने का मतलब नहीं जान पाए, एक दुसरे के सम्मान को नहीं समझ पाए. मतलब यही की हमारा समाज ही इसका दोषी है। पूजा और व्रत में कन्याओं को बाहर से बुला कर भोजन करा सकते है लेकिन बाहर होते महिला अपराध के लिए आवाज़ नहीं उठा सकते न किसी महिला की मदद कर सकते है क्यूँ ? क्यूंकि वो आपके परिवार की बात नहीं...... तो गलती तो हमारी भी है।

ऐसा नहीं है की महिलाएं कमज़ोर है और कुछ कर नहीं सकती वो चाहे तो अपने विरुद्ध हुए हर अत्याचार का मुंह तोड़ जवाब दे सकती है. जरा सोचिये क्या होगा जब देश की हर बेटी अपने हाथों में बन्दुक थाम ले और हर उस इन्सान को मौत की नींद सुला दे जो उसे छूने की कोशिश करे ......तब क्या होगा ......न्याय ? क्यूंकि जो अब और आज हो रहा है वो तो न्याय नहीं हो रहा ...... क्या यही सही होगा ? नहीं न !!!
कानून और उसको चलाने वाले दोषी है पर हर बार कानून और सरकार को दोष दे कर चुपचाप नहीं बैठा जा सकता कुछ जिम्मेदारियां खुद पर भी लेनी होंगी. यह समय बहुत मुश्किल है हम सभी महिलाओं के लिए जिसमें न केवल कानून और सरकार के कड़े कायदों एवं नियमों की भागीदारी चाहिये बल्कि स्वस्थ सोच और महिलाओं के खिलाफ खड़े जागरूक समाज की भी बहुत आवश्यकता है .



Tuesday, June 10, 2014

मन के हारे हार है मन के जीते जीत

अक्सर हम लोग सफल लोगो की कहानियाँ, उनकी संघर्ष गाथा सुनते है उन्हें सराहते है कुछ वक़्त तक उनके जीवन के बारे में सोचते है और फिर एक ठण्डी आह भरते हुए कहते है ''काश हमारे नसीब में भी कुछ ऐसा होता''

सोचिये कितने ही लोग ऐसे है जो इस बात को रोज़ सोचते है की उनका नसीब होता तो वह भी आज अच्छे मुकाम पर होते, सफल होते। कई लोग इनसे प्रभावित हो कर अपने जीवन की दिशा बदल लेते है कुछ कोशिश करते है और शायद उनमें से कुछ सफल भी हो जाते होंगे पर क्या सच में सफलता नसीब की बात है या ये सब कठिन परिश्रम, मेहनत और सकारात्मक सोच का नतीजा है।

एक उदहारण देना चाहूँगी - कक्षा में सभी छात्र को एक साथ एक ही विषय एक ही शिक्षक द्वारा एक ही तरीके से एक ही वक़्त में पढ़ाया जाता है फिर भी सभी छात्र प्रथम नहीं आते।  कोई पहला कोई दूसरा और बाक़ी संतोषजनक अंकों के साथ अपनी पढ़ाई पूरी करते हैं। कभी सोचा है ये सब क्यूँ है ? क्यूँ हर छात्र प्रथम नहीं आता जबकि एक ही कक्षा में एक ही समय में एक ही तरीके से एक ही शिक्षक सभी छात्रों को पढता है। क्या कारण है इसका ?

सोच के देखिये कितना आसान होता है ये कहना की व्यक्ति विशेष का नसीब अच्छा था इसलिय आज वो सफल है जबकि कोई ये नहीं कहेगा की उसने कठिन दिनों में भी अपने आपको गिरने नहीं दिया, सकारात्मकता को नहीं छोड़ा और लाख कमज़ोर स्थितियों के बाद भी अपने मन की सकारात्मक दिशा बनायीं रखी और सफलता का संकल्प कर सफल हुआ।

इंसान जब खुद को कमज़ोर, असहाय महसूस करने लगता है उसी पल उसकी हार हो जाती है। ये मानव जाति को मिला वरदान है की उसे दो विकल्पों के बीच सदैव चुनाव करना पड़ता है और यह उसका मानसिक स्तर, उसका विवेक है की वह क्या चुनता है। मानसिक रूप से प्रबल व्यक्ति सदैव आगे बढ़ने की बात करता है उसके लिए नसीब, भाग्य जैसी बातें सिर्फ शब्द होते है वह निराशा में भी आशा की किरन खोज लेते है उनके लिए हर वक़्त शुरुआत का वक़्त होता है।

सुधा चंद्रन जी जानी-मानी हस्ती हैं जिन्होंने दुर्घटना में अपना पैर खो देने के बाद भी अपनी कला को नहीं छोड़ा । निर्त्य के साथ ही अभिनय को आगे बढ़ाया । अपनी सकारात्मक सोच के साथ अगर वह भी कमज़ोर हो जातीं और हार मान लेतीं तो शायद आज वह इतनी सफल नही होती। इसी तरह कई लोग ऐसे है जो अपने शारीरिक कमज़ोरी को अपनी मानसिक शक्ति बना कर सकारात्मक सोच के साथ सफल हुए है। हर सफल व्यक्ति पहले निराश हुआ, गिरा, सम्भला और उठ कर संकल्प कर हर नाकाम कोशिश पर दोबारा कोशिश कर अंतः सफल हुआ है। यह कोई चमत्कार नहीं है बल्कि शक्ति है इरादों की, मेहनत की, कठिन परिश्रम और संघर्ष की जिसने एक साधारण व्यक्ति को विशेष बना दिया।

इंसान की यह फितरत है की वो किसी भी घटना और बात को लेकर सबसे पहले नकारात्मक ही सोचता है क्यूंकि वह सदैव अपने भविष्य को सुरक्षित करना चाहता है इसलिय सबसे पहले ''मुझसे नहीं होगा '' वाली स्थति सामने आ जाती है और यही हर सम्भावना का अंत हो जाता है।

किसी भी कार्य को पूरा करने के लिए सम्भावनाओ का होना अति आवशयक है क्यूंकी यही सकारात्मकता को जन्म देती है। मन को सशक्त बना सम्भवनाओं को गढ़ना और सकारात्मकता के साथ मनोबल बनाये रखना हर सफल व्यक्ति का मंत्र है।

अपने हाथों को ये कह कर बाँध ले की ''हम से नहीं हो पायेगा'' और मन से हार मान कर किस्मत और नसीब को कोसते रहें ये मनुष्य का कर्म नहीं है। मनुष्य के पास वो शक्ति है जो ब्रह्माण्ड के किसी जीवित प्राणी में नहीं है अपनी इच्छाशक्ति को प्रबल कर मनुष्य कोई भी बड़े से बड़ा और कठिन कार्य कर सकता है।

असफल हो जाने से लोग डरते है इसलिय कोशिश भी नहीं करते पर क्या हुआ जो असफल हो जाओगे कोई बात नहीं एक बार नहीं दो बार नहीं तीन बार कोशिश करो तब तो सफलता मिलेगी और जब तब भी नहीं मिली तो सबक तो मिलेगा, अनुभव तो मिलेगा जो शायद वर्तमान में नहीं परन्तु भविष्य में काम आ जाये। अपनी असफलताओं से सीखना चाहिए, उनमे सुधार करना चाहिए।

दरअसल हम स्वयं ही अपनी असफलता के कारण हैं और हमारे भीतर ही असफलता का सबसे बड़ा कारक है वह है हमारे मन में सफलता को लेकर ''संदिघ्द्ता'' प्रयास करने से पहले ही हम स्वयं अपनी सफलता पर संदेह करते हैं और परिणाम आने से पहले ही अपनी हार स्वीकार लेते है। अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए कोई भी संशय मन में नहीं रखना चाहिए क्यूंकि संशय के साथ किया गया कार्य कभी पूर्ण नहीं होता क्यूंकि उसमे मेहनत, लगन और सकारात्मकता की कमी होती है और जब तक कोई भी कार्य सतप्रतिशत न किया जाये वह अधूरा रहता है विफल रहता है और कहा भी गया है ''मन के हारे हार है मन के जीते जीत।

हमारी प्रकृति ने ही हमे अनेक उदहारण दिए है जो हमे निरन्तर प्रयास करते रहने और सकारात्मकता को अपनाने की ओर अग्रसर करते है फिर भी लोग अपने आस-पास के प्रेरणाकारकों को अनदेखा कर निराशा में डूबा रहता है। नन्ही चींटी, चिड़िया, मधुमक्खी, मकड़ी और कई बाक़ी ऐसे ही जीव-जंतु हमे प्रेरणा देते है और निरन्तर प्रयास करते रहने और संघर्ष करने की कला सिखाते है वह अतुलनीय है जिसे हम सभी महत्व नहीं देते जबकि सिखने और नयी शुरुआत करने के लिए सिर्फ एक कारण बहुत होता है हाँ जरुरत है सम्भावनाएं तलाशने की और सकारात्मक बने रहने की। ऐसा करने पर शायद जल्दी तो नहीं पर एक दिन आप जरूर सफल होंगे

दोस्तों सफलता आसान नहीं होती पर जब भी हार मिले, तो अपनी सम्भावनाओ के संदर्भ में इस हार को एक पुनः प्रयास के रूप में कबुल करें। फिर दोबारा प्रयास करें और लक्ष्य की और बढ़े.....

अंतिम में आप सभी के लिए मनोबल बढ़ाती मेरी कुछ पंक्तियाँ……

हे मन कर कल्पना
बना फिर अल्पना
खोल कर द्वार
सोच के कर पुनः संरचना
हे मन कर कल्पना

क्यूँ मौन तू हो गया
किस भय से तू डर गया
खड़ा हो चल कदम बढ़ा
करनी है तुझे कर्म अर्चना  
हे मन कर कल्पना

छोड़ उसे जो बीत गया
भूल उसे जो रीत गया
निश्चय कर दम भर ज़रा
सुना समय को अपनी गर्जना
हे मन कर कल्पना

पथ है खुला तू देख तो
नैनो को मीच खोल तो 
ऊंचाई पर ही फल मीठा मिले
बिन गाये नहीं होती वन्दना
हे मन कर कल्पना

किनारे छोड़ नदी में उतर
तैर कर असत्य पार
बिन मरे कोई स्वर्ग पाये
गढ़नी है तुझे नयी अभिव्यंजना
हे मन कर कल्पना……