Friday, September 26, 2014

दिल्ली लाइफ-2

मेरे कमरे की बालकनी में सुबह-सुबह कबूतरों का अच्छा-खासा मज़ुमा लगता है....उनकी गुटर-गु...गुटर-गु ....बड़ी अच्छी लगती है जैसे अलार्म हो ये ....मधुर अलार्म

बालकनी के सामने ही पंजाबी परिवार की बालकनी यानी उनका घर हैं ....सुबह के 8 बजे और लता जी की मीठी आवाज़ '' बड़ा नटखट है ये कृष्णा कन्हियाँ...का करे यशोदा मैया ....गीत बन कानो में पड़ी ....ये मेरा पसंदीदा गीत है जो मुझे मुंह जबानी याद भी हैं .... दिल खुश हो गया सुन कर ...पर उसी बीच ...कर्कश आवाज़ आई ...''ओ मरजानी ...आलू उबले है वही बना ले.... सवेरे सवेरे मुंडे दा दिमाग खांदी है''....

मैं तो ठिठक गयी जैसे ....इतने मधुर स्वरों के बीच ये कौवें जैसी आवाज़ उफ्फ्फ ...... कुछ समय बाद .....फिर मधुर स्वर बहने लगे ....''जय अम्बे गौरी ...मैया जय श्यामा गौरी ''....अनुराधा पोडवाल जी की शीलत ध्वनि ....आहा ....सारा वातावरण महकने लगा.....

कुछ समय तक घंटियाँ बजती रहीं और भजन चलते रहे ....माहौल सुगंधित और पवित्र हो गया था ....तभी फिर वही कौवा बोला ..... ''तेरी जैसी ढीठ नी देखिया मैं ....रोज़-रोज़ तेनू सिखावंगी मैं ...हट परे ...मैं खुद ही कर लंगी''....

मेरा मन फिर ख़राब हो गया ......मैंने अपनी दोस्त से इस परिवार के बारे में पूछा ....पता लगा ...ये कौवा सास है और अपनी नवेली बहूँ से ऐसे बात करती है .... वजह शायद ये की उनकी इच्छा से लडके ने शादी नहीं की थी उसकी ''लव-मैरिज'' थी .....

अजीब है न लोग ....दोहरे मन के .....ईश्वर का नाम जपते हैं और उसके बनाये इन्सान से नफरत करते है .....ईश्वर कुछ मांगता नहीं फिर भी उसके लिए सारे आडम्बर किये जाते है और जो हर चीज़ के लायक है उसको गलियां दी जाती हैं ..... नवरात्रे शुरू हो गये ये मुझे अभी सुबह ही पता लगा ....और ये भी की ....देवी(स्त्री) किस-किस तरह से पूजी जाती हैं.....

*शहर कोई भी हो ....विभिन्नतायें हो सकती हैं पर ......पाखंडियों से दुनिया भरी पड़ी हैं .....

Wednesday, September 24, 2014

दिल्ली लाइफ- 1

दिल्ली के बारे में लोगो की आम राय यही है की यहाँ के लोग ''एक दुसरे से कोई मतलब नहीं रखते...अपने स्वार्थ के लिए सारे हथकंडे अपना लेते है यानी ...बेहद स्वार्थी और मतलब परस्त लोग है'' .....

मैं इस राय को नकारती हूँ ....मैं दिल्ली में जहाँ पहले रहा करती थी वो मेरे रिश्तेदार थे और एक्सीडेंट के बाद जब में घर गयी तो गुज़रते वक़्त के साथ वो रिश्तेदार और उनकी सोच भी बदल गयी .....दुःख हुआ मुझे बहुत पर ....अच्छा ही हुआ वक़्त रहते सच्चाई सामने आ गयी....

फिर वापस दिल्ली आई और रहने के लिए जगह तलाशती उससे पहले ही मेरी कुछ माह पूर्व बनी सखी ने बड़े ही स्नेह से मुझे अपने घर में रहने को कहा .....''मैं बता दूँ...मेरी सखी पूरी तरह से दिल्ली की हैं और इसी मतलबी परिवेश कि हैं ....लेकिन इनके स्वभाव में दूर-दूर तक इस दोहेरे परिवेश का कोई नामो-निशां नहीं है'' ..... मुझसे उम्र में बड़ी होने के बाद भी इनके व्यक्तित्व का सादापन और इनकी सरलता इन्हें सबसे ख़ास बनाती है.....मुझे इस बात की बेहद ख़ुशी है की जब मेरे अपनों ने मेरे साथ सौतेला व्यवहार किया तब मेरे साधारण से परिचय के बाद भी ''मेरी सखी'' ने मुझे वैसे समझा और अपनाया जैसी मैं हूँ...

उनके परिवार ने भी मुझे मेरे नाम से नहीं बल्कि ''नये रिश्तों'' से जोड़ा और सम्बोधित किया....मैं मानती हूँ की हमारे अनुभव हमें किसी के प्रति राय बनाने पर मजबूर करते है परन्तु उस अनुभव को हर एक इन्सान पर आज़माना और राय बनाना गलत है ..... अगर सभी मतलबी और स्वार्थी है तो....अच्छे लोग कहाँ है और कौन हैं?

दिल्ली में दिल वाले हो न हो ...पर दिल्ली में दिल-वालियाँ जरुर हैं .....

Wednesday, September 17, 2014

सिंगल मदर...

सिंगल मदर होना मजाक नहीं हैं ..... एक मर्द इस ज़िम्मेदारी को कभी नहीं निभा सकता...मेरे ज़ेहन में ऐसा कोई उदाहरण भी नहीं है जो सिंगल फादर को इस पक्ष में सामने रख सके....

चलिए मान भी लें ऐसा कोई उदाहरण होगा या है भी तो उसकी परिस्थतियाँ ''सिंगल मदर'' से कम पेचीदा और साधारण ही होंगी.....

मान ले यदि कोई ऐसा ''एकल पिता'' है भी तो ...कम से कम उसे ''उपयोगी सामान'' की तरह तो देखा नहीं जाता होगा न ही उसके आस-पास ऐसी महिलाओं का हज़ुमा लगा रहता होगा जो हर पल यही सोचती होंगीं की कभी तो ये ''पट जाए''....कभी तो घर ''एक कॉफ़ी'' के लिए बुला ले..... या उसके नकारात्मक व्यवहार पर ये कहती फिरतीं हों की ''ये तो है ही चरित्रहीन तभी तो अकेला है''......इन सबके आलावा उसके द्वारा की गयी सहायता का गलत अर्थ और उसको ''चांस मारने'' का उलाहना
दिया जाता होगा .....और सबसे ख़ास बात ये की उसके दोस्तों में उतना ही ''इंटरेस्ट'' दिखाया जाता होगा जितना की उसके बच्चों में .....क्या ऐसा होता है ?? क्या किसी एकल पिता के साथ ये मुमकिन है ?? क्या उसका सामाजिक होना और लोगो की सहायता करना उसको ''चरित्रहीन'' होने का करार देता है ???

यदि नहीं तो .........क्यूँ....और किस लिए .....एक सिंगल मदर इन सभी परिस्थतियों का सामना करती है....क्यूँ उसे समाज का हर दूसरा मर्द '' उपयोगी सामान'' समझता है..... क्यूँ उसकी सहायता उसके अच्छे व्यवहार को ''चरित्रहीनता'' माना जाता है....क्यूँ वो सिर्फ ''पट जाने के लिए'' सोची-विचारी जातीं हैं.....क्यूँ उसके घर आने का हक़ हर मर्द के मन में उछालें मारता हैं ......क्यूँ उसके बच्चे उन सभी मर्दों के हो जाते है जो उससे साधारण सा भी वार्तालापी रिश्ता रखते हैं.....और क्यूँ वो ''ना'' करने पर वो बद्चलन हो जाती है.....क्यूँ ???

क्यूंकि वो एक मजबूत इरादों वाली माँ है....क्यूंकि वो अपनी जिम्मेदारियां किसी मर्द से बेहतर निभाती हैं....क्यूंकि वो अपनी सामाजिक और व्यक्तिगत ज़िन्दगी को पूर्ण रूप से जीती हैं....क्यूंकि वो पुरुषवादी सोच के मुंह पर जोर का तमाचा है.....क्यूंकि वो किसी की तकलीफ को आसानी से समझ कर उसकी सहायता करती है....या सिर्फ इसलिए क्यूंकि वो एक ''सिंगल मदर'' हैं और इसलिए सारे मर्दों की उस पर नज़र है....

Monday, September 1, 2014

लव-अत्याचार

कॉलेज के दिनों में बिसनेस कम्युनिकेशन के नाम से एक विषय पढ़ाया जाता था जिसमें संवादहीनता यानी ''मिस कम्युनिकेशन'' के बारे में पढ़ाया जाता था. आप सभी ने भी सुना होगा की किस तरह से एक छोटी सी बात का सही संवाद न होने की वजह से मुख्य बात के अर्थ का अनर्थ हो जाता है इसी का ताज़ा उदाहरण हमारे सामने है ‘’लव-जेहाद’’ के रूप में है.

लव-जेहाद सच में एक आधी-अधूरी चर्चा है जिसे जितने मुंह मिलते गए उसमें उतने ही मसाले मिलते गये और कब बात का बतंगड़ बन गया पता ही नहीं लगा पर अब इस बहस ने राजनीतिक रूप धर लिया है या ये कहे की अब ये कठमुल्लों के हाथ का झुनझुना बन गया है.

सबसे पहले शायद केरल से यह शब्द चला, और फिर जांच से पता चला कि यह शब्द जितना हवा में है, उतना हकीकत में नहीं. केरल सरकार ने बाकायदा अदालत में कहा कि उसे इस ''लव जेहाद'' का एक भी मामला नहीं मिला. पर इस बात ने जोर तब पकड़ा जब अचानक उत्तर प्रदेश से लेकर झारखंड तक में यह शब्द नई गूंज लेकर फिजाओं में रोष भरने लगा. यह शुरुआत तब हुई जब मेरठ की एक लड़की ने आरोप लगाया कि उसे अगवा करके मदरसों में रखा गया, उसके साथ सामूहिक बलात्कार हुआ, उसका ऑपरेशन कराया गया, उसे धर्म परिवर्तन करने के लिए विवश किया गया और फिर उसे सऊदी अरब भेजने की तैयारी की जा रही थी.

माहौल में अचानक सांप्रदायिक तनाव पैदा कर सकने वाली ताकत से लैस इन आरोपों की पोल पट्टी जब धीरे-धीरे खुलने लगी और दिखने लगा कि यह मामला दरअसल एक प्रेम प्रसंग का है जिसे छुपाने के लिए इतने सारे झूठ बोले गए, तब इस मामले को मौके पर चौके की तरह राजनीतिक संगठनों ने और कुछ मज़हबी ठेकेदारों ने लव-जेहाद का नाम दे दिया. उनके मुताबिक इस लव जेहाद में मुस्लिम लड़के हिंदू लड़कियों को फुसलाते हैं और फिर शादी करके उनका धर्म परिवर्तन कराते हैं.

इस सांप्रदायिक आग को घी का तड़का तब मिला जब रांची की एक राष्ट्रीय निशानेबाज लड़की तारा शाहदेव का मामला सामने आया. तारा ने बताया कि रकीबुल हसन नाम के एक शख्स ने उसे झांसा देते हुए अपना नाम रंजीत सिंह कोहली बताया और फिर उससे शादी कर ली. यह बात बाद में खुली कि वह मुस्लिम है और उसके बाद उसने धर्म परिवर्तन का दबाव बनाना शुरू किया- तारा के साथ बुरी तरह मारपीट भी की. अब इस मामले की जांच पुलिस कर रही है.

इस बात से नहीं पलटा जा सकता कि कई बार प्रेम-विवाह में इस तरह का धोखा हो जाता है जबकि ऐसे धोखे व्यवस्था-विवाह में ज्यादा देखने को मिल जाते है लेकिन इस मुद्दे को किसी लडकी से हुए छल, उसके शारीरिक और यौन उत्पीड़न को न देखेते हुए इस बात पर तवज्जों ज्यादा दी जाती रही कि यह एक लव-जेहाद का मामला है जो मुस्लिमों की हिन्दुओं के खिलाफ़ एक साजिश का हिस्सा है.

इस बात में दोराय नहीं कि रकीबुल हसन को वाकई सजा मिलनी चाहिए. लेकिन इंसाफ के इस ज़रूरी तकाज़े को भाजपा और संघ परिवार ने अपनी राजनीतिक मुहिम बना डाला और जोर-जबरदस्ती कर रांची बंद करवाई. यह मामला उनके लिए लव जेहाद का ऐसा ज्वलंत उदाहरण बना जिसके आधार पर बड़ी आसानी से लोगों की भावनाएं भड़काई जा सकती हैं और नयी सरकार आने के बाद देश में होने वाले चुनावों के लिए वोटों के धुरुविकरण की कोशिशों को अंजाम दिया जा सकता है.

देखा जाए तो लव-जेहाद जैसा कुछ भी नहीं है यह शिगूफा मात्र है जो महिलाओं की आज़ादी, उनकी बढती सामाजिक पहल के खिलाफ़ और उनके अधिकारों के विरुद्ध फैलाया गया है. असल में ये उन कुछ घटिया और तुच्छ सोच वाले सामाजिक ठेकेदारों का काम है जो यह नहीं चाहते कि महिलाये अपनी इच्छा से विवाह करें या उन्हें ‘’चुनने का अधिकार’’ हो. समाज में महिलाओं की बढ़ती साझेदारी को हज़म कर पाना और उन्हें बराबरी का दर्जा दे पाना इस पुरुषवादी सोच को बर्दाश्त नहीं हो रहा है और उसी के चलते ये लव-जेहाद इन के लिए एक सुनहरा मौका बन के आया है.

देखा जाये तो ये लड़कियों/महिलाओं पर अघोषित तानाशाही लादने जैसा है कि उन्हें शादी कहाँ नहीं करनी है, किससे नहीं करनी है यह चुनने का अधिकार वो नहीं रखती न ही उनके माता-पिता. यह तय करेंगे राजनीतिक दलों के लोग या कोई सेना. आखिर ये हक़ इनको किसने दिया? लव-जेहाद का नाम देकर ये तानाशाही चाहते है की लड़कियां/महिलाएं वापस चार-दीवारों में कैद हो जाएँ और बिना मर्द का मुंह देखे उसके बच्चे जने, उन्हें पाले और मर जाएँ.

राजनीतिक दलों की ऐसी भूमिका क्या महिलाओं के लिए नई खाप पंचायत बना कर धर्म के नाम पर नए सिरे से उनकी ऑनर किलिंग नहीं है? आज के इस नए प्रगतिशील और टेक्नोलॉजी के युग में जहाँ चाँद पर दुनिया बसाने की बात की जाती है वहां लड़के-लड़कियों के मिलने जुलने पर रोक लगाना कहाँ तक सही है ? और इन्ही सब के चलते कभी मोबाइल फ़ोन के इस्तेमाल पर रोक लगायी जाती है तो कभी उन पर जींस न पहनने के लिए फरमान ज़ारी किया जाते है. क्या प्यार के नाम पर इस तरह का राजनीतिक खेल खेलना, उसे साम्प्रदायिक रंग देना और धर्म के आधार पर दो सम्प्रदायों में ज़हर भर देना सही है ?

लव-जेहाद के पनपने से सबसे ज्यादा भय किसे है ? अल्पसंख्यकों को ? ज़ाहिर है क्यूंकि इसका सबसे बुरा प्रभाव इन्ही के ऊपर पड़ेगा. एक तरफ जहाँ बलात्कारों के आकड़ों में अल्पसंख्यक महिलाओं/लड़कियों की संख्या अधिक है वहीँ अब लव-जेहाद के बाद बलात्कारों के कारणों को इससे जोड़ा जायेगा और जितनी थोड़ी बहुत अल्पसंख्यकों की स्थति में सुधार आया है वो फिर से अपनी पूर्व स्थति में पहुँच जायेगा.

देखा जाये तो इस मानसिकता के असली शिकार वे लड़के-लड़कियां होंगे जो अपनी जाति, अपने धर्म भूल कर एक-दूसरे से प्रेम और शादी करने की जुर्रत करते रहे हैं और इसके लिए कई तरह की सज़ाएं पहले से झेलते रहे हैं. इसके आलावा वो लड़कियां जो घर से दूर पढने जाती है और नौकरी कर रही है अब उनके लिए घर से निकलना मुश्किल हो जायेगा, उनके पीछे जासूसों की तरह उनके भाईयों और रिश्तेदारों को लगाया जायेगा क्यूंकि जिस तरह से ये धर्म के ठेकेदार लव-जेहाद से बचने के लिए उपाय सुझा रहे है की ‘’अपनी बहनों और बेटियों को संभालिए उन पर नज़र रखिये, उन्हें मुस्लिम लडकों से बचाओ’’. उनके चलते अब लडकियों को चार-दीवारी में बंद कर रखा जायेगा और उनके मन के उडान भरने से पहले ही उनको शादी के पिंजरे में कैद कर दिया जायेगा. यानी ये समझ लिया जाए कि इतने सालों तक जो महिला उत्थान के लिए कदम उठाये गये, लड़कियों को जागरूक करने और उन्हें अपने पैरों पर खड़े होने की जो कवायते चलायी गयी वो सभी मिट्टी का ढेर साबित हो जाएँगी और पैरों की जूती कही जाने वाली नारी फिर से वही बन के रह जाएगी.

इस समय समाज में दो तरह की अतिवादी धाराएँ दिख रही है जिसमें से एक लिव-इन को सही मानती है जो एकल मार्तत्व, साथी चुनना, मनचाहा पहनना और मनचाहा रहना अपना हक़ समझती हैं तो दूसरी तरफ ऐसी बिरादरी फिर बलवती हो रही है जो लड़कियों/महिलाओं को वापस दसवीं सदी में ले जाना चाहती है. किसी को भी दूसरी बिरादरी के ख़यालात कभी पसंद नहीं आयेंगे भले ही पहली बिरादरी में कुछ बुराइयाँ क्यूँ न हों.

अब जब लड़के-लड़कियां लिव-इन को अपना मनचाहा मानते है वही लव-जेहाद इस रिश्ते पर सवालियाँ निशान जैसा बन खड़ा हुआ है. लड़के-लड़कियों पर नज़र रखी जाएगी, उनके साथ होने, खाने-पीने, उनके साथ काम करने तक को शक की निगाह से देखा जायेगा. ऐसे जोड़ो को तलाशा जायेगा जो साथ रहेने को फिराक में होंगे और उन्हें पकड़ कर लव-जेहादी होने का कसूरवार ठहराया जायेगा.

लव-ज़ेहाद के नाम पर उलटी पट्टी पढाई जा रही है जबरदस्ती का मतलब निकला जा रहा है. लोगो को ढूंढा जा रहा है कि वो अलग-अलग धर्म के निकले और उन पर कहानी बनाई जाये. कुछ केस ऐसे हो सकते है पर जिस तरह से इस बात को मुद्दा बनाया जा रहा है वो राजनीतिक साजिश है उससे ज्यादा और कुछ नहीं.

फेसबुक जैसे सोशल साइट्स पर लव-जेहाद का खासा प्रचार किया जा रहा है जिसमें मुख्य संगठन शामिल है और भांति-भांति से लव-जेहाद के बारे में मनगड़ंत शिगूफे छोड़े जा रहे है मसलन फेसबुक पर लव-जेहाद के बारे में कोमवादी सोच ये कहती है की ‘’ लव-जेहाद हिन्दुओं का खात्मा करने की साजिश है और मुसलमानों ने अपनी क़ोम को बढ़ाने के लिए ये चाल चली है जिसके लिए उनको बाकायदा प्रशिक्षण दिया जाता है और फिर लड़कियों के पीछे लगाया जाता है जो जितनी ज्यादा लड़कियां लायेगा उसको उतनी बड़ी रकम दी जाती है’’.

उसके बाद इस व्याख्यान के रचियता ने पूरा हिसाब भी लगा कर दिया की यदि हिन्दू लडकी किसी मुस्लिम लडके के बच्चों की माँ बनेगी तो उसके द्वारा कितने हिन्दुओं का नुकसान होगा.

‘’एक हिंदू लड़की के मुसलमान बनने से कम से कम 8 हिन्दुओ की हानि होती हैं जो लड़की मुसलमान बनती हैं वह एक ,जिसके साथ भागती हैं उसके लिए कम से कम 4 बच्चे पैदा करती हैं, अगर वह लड़की ना भागती और किसी हिंदू के साथ शादी करती और वह समझदार होता तो कम से कम 3 बच्चे पैदा करता इस प्रकार 1+4+3=8 हिन्दुओ का नुकसान होता हैं .....जरा अनुमान लगाइए के 8 हिंदू अगले पच्चीस साल में 3 बच्चे भी पैदा करते तो 24 और वो अगले पच्चीस साल में 72 इस प्रकार सौ साल में 432 हिन्दुओ का नुकसान होता है सिर्फ एक हिंदू लड़की के जाने से’’......

अब अंदाज़ा लगायें की किस प्रकार से इस बे-सर-पैर के मुद्दे को एक ज़हीन मुद्दा बनाया जा रहा है. मैं अपने कई मुस्लिम मित्रों से इस बारे में बातचीत कर चुकी हूँ और उनका भी यही कहना है कि ये सभी बातें, सभी इल्जामत पूरी तरह से निर्थक और भ्रामक है. इस मसले का असल मुद्दा साम्प्रदायिक हलचलों को बढ़ावा देना है और महिलाओं को उनके हक़ से महरूम करना है. इसके अलावा अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के शिक्षकों का कहना है कि इस्लाम में 'लव जेहाद' जैसी कोई अवधारणा नहीं है और ये शब्द गलत तरीके से गढ़ा गया है।

दो लोग प्यार करे और साथ रहे इसमें न कोई धर्म आड़े आता है न कोई जाति, हाँ वो बात अलग है कि किजब न निभे तो प्यार को धोखा बता कर उसको सड़क पर ला कर उसकी छिछलेदारी की जाती है और इसी से कुछ लोगों को मौका मिला जाता है ‘’बहती गंगा में हाथ धोने का’’. पर इसका मतलब ये नहीं कि इससे हर कोई गैर-धर्मी विवाह किसी विरोध का मुद्दा बनना चाहिये.

कितने ही लोगों के सुखी गृहस्थ जीवन का उदाहरण हमारे सामने है जिनमें लोगों के चाहेते फिल्मी सितारों से ले कर उनके पसंदीदा खिलाड़ी और राजनेता शामिल है जिन्होंने न केवल दुसरे धर्म में शादियाँ की बल्कि आपसी परिवारों में भी सोहाद्र बनाये रखा. देश की कितनी ही नामचीन हस्तियाँ अपने दुसरे धर्म के साथी के साथ एक बेहतर और सफल जीवन बिता रहे है और दूसरों के लिए एक अच्छा उदाहरण भी है.

देश भर में लाखों-करोड़ों लड़के-लड़कियां साथ पढ़ रहे है, नौकरियां कर रहे है और धीरे-धीरे ही सही पर अपने जीवन के फैसले करना सीख रहे हैं. ज़ाहिर है कि उनके बीच भी कई तरह की विभिन्नतायें मौजूद हैं, ऊंच-नीच के फर्क भी हैं और अलग-अलग वर्गों का फासला भी है, लेकिन इन सबके बीच एक बात इन सब में सामान है-‘’अगर उन्हें कोई चीज बदल और जोड़ रही है तो वे प्रोफेसर्स के पढ़ायें गये पाठ नहीं है, न परिवार से मिलने वाले संस्कार या उनके नियम-कानून है और न ही किसी किताब का ज्ञान.. बल्कि वह प्रेम है जो उन्हें ये समझा रहा है कि सभी बराबर हैं और एक जैसे हैं. जिनका धर्म और जाति सिर्फ प्रेम है और इसी प्रेम से सभी का जीता जा सकता है.

क्यूँ न इस तरह से ही सोचे सभी और इस लव-जेहाद को उसका असल मतलब दें. आज देश को वाकई में एक लव-जेहाद की जरुरत है जो प्रेम सिखाये, प्रेम बतायें और प्रेम ही जिये.

इसलिए ज़रुरत है लव-जेहाद के झूठे प्रचार को खत्म करने की, लव-जेहाद की आड़ में उससे अपना स्वार्थ सिद्ध करने वालों को ठेंगा दिखाने की और इस बात को समझने की कि कोई भी धर्म प्रेम से बड़ा नहीं होता न उसके बिना पूरा होता है. धर्म रास्ते दिखाता है न कि रास्ते का रोड़ा बनता है.