Wednesday, May 20, 2015

मोदी महान ???

हमारे यहां एक क्षेत्रिये कहावत है ‘’दे भड़ी में आग बाबा दूर भये’’ ये कहावत उस वक़्त मेरे मन में तेज़ी से गूंजती हैं जिस समय प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी खबरों में होतें हैं. चुनाव जीतने और सरकार बना लेने के एक साल बाद भी ये कहावत अब तक मोदी पर सटीक बैठती है. इसके कई कारण हैं जिसे आप चाहते हुए भी नज़रंदाज़ नहीं कर सकते.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सभी परियोजनाओं को यदि जाना, समझा जाए तो ये सभी कार्यशीलता में सामंजस्य की कमी नजर आती है जिसका प्रमाण उनकी धुन में नज़र आता है. जिसे कहावत में ‘’दे भड़ी में आग बाबा दूर भये’’ यानी उकसा कर किनारा कर लेना कहा जाता है. इसका मतलब यह है कि मोदी देश में, विदेश में दनादन बातों नुमा गोलियों की बौछार कर रहे हैं और फिर सबकुछ छोड़कर ‘नेक्स्ट प्लीज’ कर अगला विचार पकड़ लेते हैं चूंकि योजनाओं की बारीकी उन्हें उबाऊ लगती है. फिर वह कोई भी मसला हो, मोदी एक कदम रख तुरंत छलांग लगा देते हैं.

सबसे पहले मोदी का चुनावी हथकंडा काला धन. चुनाव प्रचार के दौरान मोदी ने इस बारे में बहुत बढ़-चढ़ कर कहा. जनता का पैसा वापस ला कर उन्ही को देने का वादा किया था जबकि चुनाव बाद इस मसले पर मोदी शांत हो गए और काले धन की नाकामी के बारे में अब उनके सहयोगियों को जवाब देना पड़ रहा है.

सरकार बनाने के तुंरत बाद मोदी ने दो जोरदार परियोजनाएं शुरू की- स्वच्छ भारत अभियान और मेक इन इंडिया.

स्वच्छ भारत अभियान की घोषणा के बाद लोगों ने सफाई अभियान से ज्यादा मोदी एंड पार्टी की नोटंकी का जम के आनंद लिया. हर तरफ मोदी एंड पार्टी के आडम्बरों की चर्चा होती सुनाई दी. इस योजना को गाँधी की इच्छा और उनके कदमों पर चलने की बात बता कर खूब तारीफें बटोरने की कोशिश की गई लेकिन ये सभी युक्तियाँ काम न सकीं. भारत की सड़कछाप संस्कृति को बदलने की कोशिश करना जिसके लिए गांधी को ढाल बना कर मोदी स्वयं अपने व्यक्तिगत उदाहरण से देश को शर्मसार कर रहे थे.

स्वच्छ भारत अभियान के अंतर्गत अख़बारों में आए विज्ञापनों से तो ऐसा ही लगता रहा जैसे आने वाले दिनों में भारत दुनिया का सबसे ‘क्लीन एन क्लियर’ देश नजर आएगा लेकिन क्या ऐसा मुमकिन है कि जिस देश में आधी से ज्यादा आबादी खुले में शौच जाती है, सड़क किनारे मूत्रत्याग करती है, दीवारों को पीक मार-मार कर रंगती है और आस्था के नाम पर नदियों में तमाम आडम्बर विसर्जित करती है वो आबादी इस योजना को सफल होने देगी ?

स्वच्छ भारत अभियान के नाम पर मंत्री-संतरियों ने चौतरफा अंगेल बना-बना कर सिर्फ सेल्फी ही खिंचवाई हैं. बाकी कहीं भी कोई भी बदलाव नजर नहीं आया.

मोदी अच्छी तरह जानते है की स्वच्छ भारत अभियान जैसी योजनाएं भारत में कभी सफल नही हो सकती लेकिन अगर अवसरवादी नेता-अभिनेताओं के झाड़ू पकड़ने पर और मोदी के बधाई वाले ट्वीट से भारत की सफाई हो पाती तो हमारे देश का हर शहर टोक्यो नहीं तो सिंगापुर तो बन ही गए होते लेकिन वास्तविकता कि शहर आज भी गंदे ही हैं.

अब मेक इन इंडिया को ही लीजिए. ये क्या है? यह कैसे काम करेगा? भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर ने पहले ही इसके बारें में कह दिया कि इसका कोई ख़ास महत्व नहीं है. लेकिन यह ख़ुद भी पचासों सवाल खड़े करता है, मसलन, औद्योगिक विकास के लिए ज़मीन कहाँ से आएगी? भ्रष्टाचार और लालफ़ीताशाही कहाँ ख़त्म होने वाली है? या तैयार माल कैसे और कहाँ बिकेगा? वग़ैरह-वग़ैरह...

जबकि मोदी 'मेक इन इंडिया' के बहाने कॉरपोरेट घरानों के मुनाफ़े के लिए देश के जल-जंगल-ज़मीन और संसाधनों ख़ासकर किसानों व आदिवासियों की ज़मीन को कौड़ियों के भाव आसानी से व बेरोकटोक उपलब्ध कराने की साजिश कर रहे हैं.

एक तरह जहां भूमि-अधिग्रहण बिल को लेकर मोदी गंभीर नहीं दिखते वहीँ दूसरी और ‘मेक इन इंडिया’ प्रोजेक्ट की बात करते हैं जो मोदी की नियत में विरोधाभास की fस्थति को उजागर करता प्रतीत होता है. मोदी के पास किसानों के लिए कुछ नही है जबकि विदेशों में और अडानी-वीरानी को देने के लिए भरपूर है. यही इनका मेक इन इंडिया प्रोजेक्ट है जो सिर्फ इंडिया के लिए है ‘भारत के लिए नहीं’.

इसके अलावा विदेश नीति की बात करें तो जिस एक बात के लिए पूरी दुनिया में मोदी की तारीफ हुई वह है उनकी ऊर्जावान विदेश नीति. उन्होंने अमरीका के साथ उस समझौते को सफलतापूर्वक अंजाम दिया जिसे पूरा करने में उनकी पार्टी ने मनमोहन सिंह की राह में रोड़े अटकाए थे. लेकिन ये विदेश नीति ‘कूटनीति’ का हिस्सा थी इसलिए यह सफल हुई.

डेटा जर्नलिज्म वेबसाइट इंडिया स्पेंड में इस सप्ताह आए एक लेख के मुताबिक़ 'कमज़ोर, भ्रष्ट, अक्षम और कुनबापरस्त' मनमोहन सिंह सरकार और मजबूत, कठोर और साफ सुथरी मोदी सरकार का प्रदर्शन अपने कार्यकाल के पहले साल में क़रीब एक जैसा ही प्रदर्शन किया, बल्कि जानकारों का यहाँ तक कहना है कि मोदी ने कोई एक भी नया काम नहीं किया ‘सिर्फ शगूफे छोड़ें हैं’’.

इसमें कोई शक नही की मोदी मात्र एक अच्छे वक्ता हैं और इससे ज्यादा कुछ नहीं. लेकिन वह यह भूल रहें है की देश चलाना बातों का खेल नहीं है.

मोदी नदियों की सफाई के लिए नया कानून लाने की बात करतें हैं लेकिन गए सालों में जितने नदियाँ, तालाब, नहरें आदि सूख गए, जिनका अस्तित्व ही मिट गया उनके पुनः उत्थान के लिए कोई विचार तक नहीं करते. हालाकि नदियों के लिए कानून बनाने के लिए भी मोदी गंभीर नजर नही आते. ये मात्र हिन्दू धर्म को हथियार बना कर हिन्दुओं की भावनाओ के साथ खिलवाड़ जैसा है.

हाल ही मैं विदेशी दौरे से लौटने से पहले मोदी ने ट्वीट किया कि- ‘पहले आपको भारतीय पैदा होने पर शर्म महसूस होती थी. मगर अब आपको अपने देश का प्रतिनिधित्व करने में गर्व महसूस होता है. विदेश में रह रहे भारतीयों ने पिछले साल सरकार बदलने की आस लगाए बैठे थे’. इस ट्वीट के बाद मोदी का लगातार विरोध किया गया लेकिन मोदी इस बात के लिए भी गंभीर नजर नहीं आए की उन्होंने क्या और क्यों कहा है. हमेशा की तरह इस बार भी मोदी ने अपने आप को सर्वश्रेष्ठ बताने के लिए ट्वीटर पर यह टिप्पणी की.

मोदी शायद अपने शौक पूरे कर रहें हैं. वो ये जानते है की भारत में कुछ भी कभी भी ‘जल्दी’ नहीं बदल सकता, उसको बदलने में सालों लगतें हैं इसलिए मोदी भी किसी भी योजना, कानून, मुद्दे को शुरू करते ही दुसरे मसले के लिए योजना बनाना शुरू कर देते हैं. मोदी सिर्फ सेल्फी लेने के लिए गंभीर नजर आतें हैं बाकी सब वैसा ही चलेगा जैसे सालों से चलता आ रहा है.