Monday, December 29, 2014

कुछ तो भविष्य की चिंता करो

दिल्ली की भयंकर सर्दी में जहाँ हाथ-पैर चलाने का मन नहीं करता उस स्थति में सडकों पर ठिठुरते बेघर लोगों को मरता देख कलेजा काँप जाता है.
एक तरफ जहाँ मोदी के विकास और सुशासन जैसे विचारों से सारी समझदार बिरादरी छाती फुलाये फिरती हैं वहीँ दूसरी तरफ धर्मांतरण और घर वापसी के बे-सर-पैर के मुद्दों पर सरकार अपनी ऊर्जा नष्ट कर रही है. विकास और सुशासन ही दो रास्ते है जो देश को प्रगति कि ओर ले जा सकते है जबकि धर्मांतरण जैसे मुद्दे विकास और सुशासन दोनों के लिए ही घातक हैं तो इसको रोकने के लिए क्यों कुछ नही किया जा रहा है? क्या घर वापसी ही देश की पहली प्राथमिकता है? उस पर प्रधानमंत्री का मौन. क्या ये बढ़ावा है इन मुद्दों के लिए या लापरवाही है देश के प्रति?
क्यों इन अच्छे दिनों के वादों को मोदी भूल गये ? क्या घर वापसी से ज्यादा जरुरी ये नहीं कि हर व्यक्ति के पास घर हो ? क्या विज्ञान में सींग लगा कर ही देश कि संस्कृति और इतिहास अमर कहलायेंगे? क्या देश इतिहास और धर्म से बनता है? क्या देश की जनता सिर्फ डुगडुगी बजाने भर के लिए रह गयी है??
और क्या हम सब इतने मजबूर है जो अपने सामने ठण्ड से मरते लोगों को नज़रंदाज़ कर, कुछ बेतुके मुद्दों पर अपना भी समय बर्बाद रहें और इन तमाशेबाजों को हर साल वोट देते रहें??

Wednesday, December 24, 2014

दिल्ली लाइफ-8

'पीके' देखी और ऑफिस में हुई एक घटना याद हो आई...

अख़बार में विज्ञापन देने के लिए ऑफिस में एक तांत्रिक बाबा आये और सर को विज्ञापन छपवाने के लिए आग्रह किया. सर ने पूछा बाबा आप क्या क्या विध्या जानते है और क्या ये कार्य करतीं हैं ? बाबा ने स्टाइल मार के पैर के ऊपर पैर रख तसल्ली से कहा- हम सभी प्रकार के कष्टों का निवारण करते हैं. पूजा-हवन यज्ञ, संतान प्राप्ति, मनचाही शादी, वशीकरण, ग्रह शांति, सौतन दुश्मन खात्मा, किया-कराया, खोया प्यार पाना, कालसर्प पूजा, गया धन/लौटरी सट्टा आदि कई कार्य जादूटोना, तांत्रिक और समाधी द्वारा पूर्ण करते हैं.
सर, मैं और हमारे एक और साथी मित्र रवि उनकी बातें सुन पहले तो अपने अपने सर खुजलाने लगे फिर एक दुसरे को देख वाह की व्याख्या में मुस्कुराए... सर ने गला साफ़ कर बाबा से कहा- तो ये बतायें बाबा आप इतना सब जो करते है क्या ये सभी शर्तिया पूरा होता है या कभी ऐसा भी हुआ है कि काम ना बना हो ? बाबा तपाक से बोला - नहीं ...कभी नहीं ...आज तक ऐसा कभी नही हुआ ....ये गारंटीड होता ही है ....सर ने फिर शांत स्वर में पूछा - तो बाबा आप ये देश में हो रहे दंगे, आतंकवादी हमले, लूट-पाट और देश कि सुरक्षा के लिए हवन करे, समाधी लगायें, जादू करें, तंत्र विध्या से वशीकरण कर मोदी का दिमाग ठीक करें उसे वशीकरण कर देश के हित में कार्य करें, मैं फ्री में आपका विज्ञापन छापूंगा और इस कार्य के लिए जो खर्चा होगा उसका भी प्रबंध कर दूंगा...कहिये करेंगे ??
सर की बात सुन बाबा के कान, बाल और वह स्वयं खड़े हो गये और बोले ये ईश्वर की इच्छा है मैं इसमें बाधा क्यूँ बनू और निकल लिए. और आज पीके देख ये बाबा बड़े याद आये.

तो भाई बात जे कि पीके बेहतरीन फ़िल्म है और समाज को मनोरंजन के साथ अच्छा सन्देश भी देती है. तमाम ढोंगियों को एक बार ये फ़िल्म जरुर देखनी चाहिये और इस भरी सर्दी में आशाराम और रामपाल को भी पिकनिक के बहाने ही सही पीके के उपदेश जरुर सुनाने चाहिये...शायद कल को पीके2 बनने तक ये सुधार जायें.....देखिए भाई लोग होप नहीं खोनी चाहिये...चूँकि वही तो ईश्वर है

कई दिनों से साथी मित्रों कि पीके पर पोस्ट पढ़ी. कुछ से काफी हद तक सहमत हूँ की धर्म और मनोरंजन मिल कर कारोबार कर रहे है तो अरविन्द जी कई बार बच्चों को जैसे गा-गा कर कविताएँ सिखाई जाती हैं उसी तरह ये फिल्में भी मनोरंजन के साथ हमारे देश के नासमझों को ज्ञान दे रही हैं....बाकियों ने अपने अनुभव बताये अच्छा लगा उन सभी का भी मत उनके अनुसार सही ही है.

Tuesday, December 9, 2014

हम दोषी है...

बात ये नहीं है की अपराधी 48 घंटे में पकड़ लिया गया.....असल बात ये है कि अपराध हो ही क्यों और अपराध कैसे रुके....'निर्भया कांड' के बाद भी हमारा कानून इतना लचर है की अभी भी पुलिस अपराधी को अपराध करने के बाद ही पकड़ पाती है.....फिर कैसे ये सत्ताधारी महिला सुरक्षा को चुनावी मुद्दा बना कर वोट बटोर लेते हैं....कहाँ हैं इनके वादे जिसको ढाल बना कर ये सत्ता हथिया लिए बैठे है ....ऐसी घटनाओं पर उनका सिर्फ भाषण होता है...2 मिनट का मौन और अफ़सोस .....सुरक्षा के नाम पर क्या यही काफी है ????

दिल्ली में हुई हालिया 'कैब घटना' के बाद मेरी माँ ने मुझे फ़ोन पर इतनी सारी नसीहतें दे डाली की सोचती हूँ ..कौनसी छोडू और कौनसी पकडूं...... डरना स्वाभाविक है पर क्या डरते रहने भर से ही अपराध ख़त्म हो जायेंगे ? मेरी माँ आगरा से मुझे यहाँ नसीहतें देतीं हैं और शायद इसी तरह हर दुसरे बड़े शहरों में हर लडकी को उसकी माँ नसीहतें देती ही होगी....जल्दी ऑफिस से लौटना, अकेली कहीं मत जाना, अपने पास कुछ हथियार रखना, फ़ोन में स्पीड डायल रखना, अपनी दोस्त को सब बता के आना-जाना....ये वो और भी बहुत कुछ ..कभी-कभी तो कह देतीं है की ...सब छोड़ो और घर वापस आ जाओ..... डरना सावधानी हो सकता है ...पर ये डर यही ख़त्म नहो हो जाता बल्कि बढ़ता है ...हर लडकी डरे की उसके साथ कभी भी...कहीं भी ....कैसे भी ... बुरा हो सकता है और इस डर को पाले रखे अपने अन्दर...जीये इस डर के साथ....

पिछले दिनों रोहतक की लडकियों ने जो किया उस पर खूब बवाल मचा...उन दोनों ने अपना बचाव किया इसलिए वो चरित्रहीन और गन्दी लडकियाँ हो गयीं.....और जो लडके बलात्कार करते है वो जवानी के जोश में गलतियाँ करते हैं.....ये गलतियाँ नाबालिक भी कर दे तो मामूली बात है....और इस बात पर कोई बवाल नहीं होता बल्कि इनके बचाव में पूरी की पूरी बिरादरी उतर आती है....

यानी ...मसला लड़का लड़की का है ....इज्ज़त का नहीं ...सुरक्षा का नहीं ...... लड़के दो थप्पड़ खा जायें अपनी गलती पर तो ...नए नियम बनाये जाते हैं लड़कियों को काबू करने के लिए लेकिन.... अगर लड़कियां नोची जायें...जलाई जायें...काट-पिट दी जायें तो उनके लिए कानून बनाने पर विचार होगा ....विचारों के लिए सत्र चलायें जायेंगे....अफ़सोस ज़ाहिर किया जायेगा....नई सरकार के आने पर वो फिर से पुराने विचारों पर पुनः विचार करेगी ....और तब तक न्याय के लिए ....किसी का परिवार सामूहिक आत्मदाह करेगा...लड़कियां पंखे पर झूलेंगी...ज़हर खायेंगी...या कोई माँ अपनी कोख में ही अपनी संतान को मार डालेगी...... लेकिन सुरक्षा .....वो नहीं मिलेगी .....कभी नहीं मिलेगी....

शर्म आती है ये सोच कर की हम इस सिस्टम का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है ....हम वोटर हैं ...हम ही असली दोषी है...