Tuesday, March 17, 2015

अवतार पुराण

ये किसान,
आत्महत्या, गरीबी,
बलात्कार, हत्याएं छोड़ो
क्या बकवास करते हो

जानते नहीं हो ....
वो विष्णु अवतार है
उसे सब पता है, ये सब उसकी ही लीला है

लाओ भाई लाओ ....
फूल सजी थाली और
अगरबत्ती ले आओ

लाशों के ढेर पर
चौकी सजी है विष्णु अवतार की

भजन गाओ बस भजन.

Thursday, March 12, 2015

बदले बदले से...आप !!

समाज में परिवर्तन लाने के लिए आप एक संगठन बनाते हैं. आपके नेत्रत्व में संगठन बेहतर काम करता है और जल्द ही समाज के द्वारा स्वीकार लिया जाता है. आप ने पहले से मौजूद संगठनो की कार्यशेली पर सवाल उठाया, उनके अपारदर्शी फैंसलों पर ऐतराज जताया और समाज को बाकी संगठनों से बेहतर, पारदर्शी और प्रगतिशील तरीके से काम करने का वादा किया. फिर आप 'अपने संगठन' और समाज की मदद से एक महत्वपूर्ण पद हासिल कर लेते हैं और समाज के मुखिया बन जातें हैं.

समाज की उम्मीदों और परिवर्तन के दारोमदार का ज़िम्मा लिए आप समाज को सपने दिखाते हैं लेकिन जल्द ही आप 'संगठन कलेश' में अपनी ज़िम्मेदारी भूल जातें हैं.
समाज आपका मुंह ताकता रहता है और आप 'संगठन परिवर्तन' में लगे रहेतें हैं.
समाज आँखों में आस लिए आपको तलाशता है और आप 'अपनी उम्मीदें' पूरी करने में लगे रहतें हैं. समाज हाथ पसारे प्रगति की मांग करता है और आप 'संगठन प्रगति' में लगे रहतें हैं.
आप समाज को, परिवर्तन, प्रगति, विकास और उम्मीदों का झुनझुना पकड़ा कर अपने ही संगठन के 'चूल्हे-चोके' से बाहर नहीं निकल पा रहे तो फिर किस बात का परिवर्तन, किस तरह की प्रगति और कौन सा विकास ? कर तो आप वही रहें है जिसके लिए आपने आवाज़ उठाई और बाकियों पर दोषारोपण किए.

केजरीवाल अच्छे प्रशासक हैं लेकिन अच्छा संगठन नेत्रत्व नहीं कर सकते. वे क्यों नही मान लेते कि एक साथ दो जगह पर होना उनके लिए ही नही वरन संगठन के लिए भी पतन का कारण हो सकता है. चापलूसों और चापलूसी से बचने के लिए ही केजरीवाल ने अलग पार्टी बनाई लेकिन अब जो उनकी पार्टी में हो रहा है वो 'चापलूसी' ही है. आपके साथ के लोग आपसे सवाल-जवाब न करें तो चापलूसी ही शेष रह जाएगी और फिर यही सब तो आप को पसंद नहीं था यही तो दोष था 'बाकियों' का.

मतलब ये की जिस तरह की राजनीती और कार्यव्यवस्था से तंग आ कर जनता ने आप को समर्थन दिया अब वही सब केजरीवाल कर रहें हैं. घर का मुखिया भी निर्णय लेने के लिए सबकी राय लेता है और जो सबके हित में हो वही निर्णय सुनाता है. पर केजरीवाल को क्या हुआ जी. ये क्या चाहते हैं ? चापलूसों की भीड़ ....जो हां में हां मिलातें रहें. फिर चाहे चापलूसी में कुमार विश्वास को मुख्यमंत्री बना दिया जाए.

जागो मोहन प्यारे...होश में आओ. तुम्हें दिल्ली की सत्ता बड़ी मुश्किल से मिली है इसे सांप-सीड़ी का गेम मत बनाओ. दूसरों के अंजाम को देख के सबक लो. लोगों को दिखाए सपने पूरे करो. ये चूल्हा-चोका छोड़ो. पांच साल केजरीवाल सुनने में अच्छा लगता है. गर ये हकीकत में चाहते हो तो काम करो.

*कमियां सभी में होतीं हैं जरुरी है उन्हें जान कर सुधारना न की कमियां गिनाने वालों को सुधारना.

Sunday, March 1, 2015

हम से ज़माना...ज़माने से हम नहीं...

बलात्कार, छेड़खानी, छू भर लेने की तमन्ना, पीछा करना, फ़ोन पर अश्लील मैसेज करना/कॉल करना, तेजाब फेंकना यानी किसी भी रूप में महिलाओं/लड़कियों को तंग करने के बाद यदि कोई मर्द नुमा व्यक्ति ये समझे कि 'अब वो लड़की चुप रह कर सब भूल जाएगी या अपनी इज्ज़त और बदनामी की दुहाई दे कर समाज से खुद को अलग कर लेगी' तो ये उस मर्द नुमा व्यक्ति की सड़ेली सोच है...

किसी भी प्रकार के शारीरिक, मानसिक रूप से उत्पीड़ित महिला/लड़की अपनी आप बीती के बाद यदि यह सोचे कि उसका जीवन बर्बाद हो गया, कोई उसे अपनाएगा नहीं, वो किसी को मुंह दिखाने के काबिल नही रही, उससे अपराध हो गया है, उसे परिवार और समाज ताने देगा, उसे पल पल ये एहसास दिलाया जायेगा की वो अपवित्र है, वो बेचारी है और इसलिए उसे अपनी आप बीती को निगल जाना चाहिये, घर में बंद हो जाना चाहिये, समाज से अलग हो जाना चाहिये और इन सब परिस्थति से बचने के लिए उसे आत्महत्या कर लेनी चाहिये....तो ये सिर्फ और सिर्फ उस महिला/लड़की की गलतफहमी है.....कई ऐसे उदहारण मौजूद है जिनमें पीड़ित महिलाओं ने साहस दिखाया और अपने इरादों को मजबूत कर आज बेहतर जीवन जी रही हैं.

आपका मान-सम्मान आपसे कोई भी नही छीन सकता...न कोई मर्द, न मर्दों का झुंड ..और न मर्दों का ये समाज.. मान-सम्मान ये शरीर नहीं आपके इरादें हैं जिन्हें कोई नहीं छीन सकता, कोई नहीं तोड़ सकता. ''अगर सुअर छू ले तो नहाना पड़ता है'' ये इसी समाज से सुना...जिसका मतलब देर से समझ आया की गन्दगी यदि तन से छु जाए तो उसे साफ़ पानी से धो लो....और फिर पहले जैसे हो जाओ. एक सुअर के छू देने से कोई भी अपवित्र नहीं होता, किसी का मान नहीं जाता, किसी की ज़िन्दगी बर्बाद नहीं होती, किसी को ताने नहीं सुनने पड़ते, कोई बेचारा नहीं हो जाता और न ही कोई बेबस हो कर आत्महत्या करता है.
आपका मन, आपकी सोच, आपके सपने और आपके होंसले जब तक बुलंद है, जिन्दा हैं तब तक कोई भी...कोई भी आपके मान- सम्मान, आपकी इज्ज़त का बाल भी बांका नहीं कर सकता...किसी अंग के भंग हो जाने से आपकी ज़िन्दगी खत्म नहीं हो सकती...ज़िन्दगी सिर्फ शरीर नही. ये उस सुअर का दोष है. उसकी प्रवत्ति का, उसके पालन-पोषण का दोष है.

मेरी छुपी, अंधेरों में दुबकी, चुप्पी ओढ़ी, जीवन को कोसती, तानों को सहती, आत्महत्या का विचार लिए जीती सहेलियों ...सुनों ..आपको तब तक कोई नहीं गिरा सकता जब तक आप अपनी नजरों में न गिर जाएं. अपने लिए लड़ों, जियो और इन सूअरों को समाज से निकाल फेंकने का प्रयास करो.