Thursday, March 12, 2015

बदले बदले से...आप !!

समाज में परिवर्तन लाने के लिए आप एक संगठन बनाते हैं. आपके नेत्रत्व में संगठन बेहतर काम करता है और जल्द ही समाज के द्वारा स्वीकार लिया जाता है. आप ने पहले से मौजूद संगठनो की कार्यशेली पर सवाल उठाया, उनके अपारदर्शी फैंसलों पर ऐतराज जताया और समाज को बाकी संगठनों से बेहतर, पारदर्शी और प्रगतिशील तरीके से काम करने का वादा किया. फिर आप 'अपने संगठन' और समाज की मदद से एक महत्वपूर्ण पद हासिल कर लेते हैं और समाज के मुखिया बन जातें हैं.

समाज की उम्मीदों और परिवर्तन के दारोमदार का ज़िम्मा लिए आप समाज को सपने दिखाते हैं लेकिन जल्द ही आप 'संगठन कलेश' में अपनी ज़िम्मेदारी भूल जातें हैं.
समाज आपका मुंह ताकता रहता है और आप 'संगठन परिवर्तन' में लगे रहेतें हैं.
समाज आँखों में आस लिए आपको तलाशता है और आप 'अपनी उम्मीदें' पूरी करने में लगे रहतें हैं. समाज हाथ पसारे प्रगति की मांग करता है और आप 'संगठन प्रगति' में लगे रहतें हैं.
आप समाज को, परिवर्तन, प्रगति, विकास और उम्मीदों का झुनझुना पकड़ा कर अपने ही संगठन के 'चूल्हे-चोके' से बाहर नहीं निकल पा रहे तो फिर किस बात का परिवर्तन, किस तरह की प्रगति और कौन सा विकास ? कर तो आप वही रहें है जिसके लिए आपने आवाज़ उठाई और बाकियों पर दोषारोपण किए.

केजरीवाल अच्छे प्रशासक हैं लेकिन अच्छा संगठन नेत्रत्व नहीं कर सकते. वे क्यों नही मान लेते कि एक साथ दो जगह पर होना उनके लिए ही नही वरन संगठन के लिए भी पतन का कारण हो सकता है. चापलूसों और चापलूसी से बचने के लिए ही केजरीवाल ने अलग पार्टी बनाई लेकिन अब जो उनकी पार्टी में हो रहा है वो 'चापलूसी' ही है. आपके साथ के लोग आपसे सवाल-जवाब न करें तो चापलूसी ही शेष रह जाएगी और फिर यही सब तो आप को पसंद नहीं था यही तो दोष था 'बाकियों' का.

मतलब ये की जिस तरह की राजनीती और कार्यव्यवस्था से तंग आ कर जनता ने आप को समर्थन दिया अब वही सब केजरीवाल कर रहें हैं. घर का मुखिया भी निर्णय लेने के लिए सबकी राय लेता है और जो सबके हित में हो वही निर्णय सुनाता है. पर केजरीवाल को क्या हुआ जी. ये क्या चाहते हैं ? चापलूसों की भीड़ ....जो हां में हां मिलातें रहें. फिर चाहे चापलूसी में कुमार विश्वास को मुख्यमंत्री बना दिया जाए.

जागो मोहन प्यारे...होश में आओ. तुम्हें दिल्ली की सत्ता बड़ी मुश्किल से मिली है इसे सांप-सीड़ी का गेम मत बनाओ. दूसरों के अंजाम को देख के सबक लो. लोगों को दिखाए सपने पूरे करो. ये चूल्हा-चोका छोड़ो. पांच साल केजरीवाल सुनने में अच्छा लगता है. गर ये हकीकत में चाहते हो तो काम करो.

*कमियां सभी में होतीं हैं जरुरी है उन्हें जान कर सुधारना न की कमियां गिनाने वालों को सुधारना.

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