Wednesday, September 17, 2014

सिंगल मदर...

सिंगल मदर होना मजाक नहीं हैं ..... एक मर्द इस ज़िम्मेदारी को कभी नहीं निभा सकता...मेरे ज़ेहन में ऐसा कोई उदाहरण भी नहीं है जो सिंगल फादर को इस पक्ष में सामने रख सके....

चलिए मान भी लें ऐसा कोई उदाहरण होगा या है भी तो उसकी परिस्थतियाँ ''सिंगल मदर'' से कम पेचीदा और साधारण ही होंगी.....

मान ले यदि कोई ऐसा ''एकल पिता'' है भी तो ...कम से कम उसे ''उपयोगी सामान'' की तरह तो देखा नहीं जाता होगा न ही उसके आस-पास ऐसी महिलाओं का हज़ुमा लगा रहता होगा जो हर पल यही सोचती होंगीं की कभी तो ये ''पट जाए''....कभी तो घर ''एक कॉफ़ी'' के लिए बुला ले..... या उसके नकारात्मक व्यवहार पर ये कहती फिरतीं हों की ''ये तो है ही चरित्रहीन तभी तो अकेला है''......इन सबके आलावा उसके द्वारा की गयी सहायता का गलत अर्थ और उसको ''चांस मारने'' का उलाहना
दिया जाता होगा .....और सबसे ख़ास बात ये की उसके दोस्तों में उतना ही ''इंटरेस्ट'' दिखाया जाता होगा जितना की उसके बच्चों में .....क्या ऐसा होता है ?? क्या किसी एकल पिता के साथ ये मुमकिन है ?? क्या उसका सामाजिक होना और लोगो की सहायता करना उसको ''चरित्रहीन'' होने का करार देता है ???

यदि नहीं तो .........क्यूँ....और किस लिए .....एक सिंगल मदर इन सभी परिस्थतियों का सामना करती है....क्यूँ उसे समाज का हर दूसरा मर्द '' उपयोगी सामान'' समझता है..... क्यूँ उसकी सहायता उसके अच्छे व्यवहार को ''चरित्रहीनता'' माना जाता है....क्यूँ वो सिर्फ ''पट जाने के लिए'' सोची-विचारी जातीं हैं.....क्यूँ उसके घर आने का हक़ हर मर्द के मन में उछालें मारता हैं ......क्यूँ उसके बच्चे उन सभी मर्दों के हो जाते है जो उससे साधारण सा भी वार्तालापी रिश्ता रखते हैं.....और क्यूँ वो ''ना'' करने पर वो बद्चलन हो जाती है.....क्यूँ ???

क्यूंकि वो एक मजबूत इरादों वाली माँ है....क्यूंकि वो अपनी जिम्मेदारियां किसी मर्द से बेहतर निभाती हैं....क्यूंकि वो अपनी सामाजिक और व्यक्तिगत ज़िन्दगी को पूर्ण रूप से जीती हैं....क्यूंकि वो पुरुषवादी सोच के मुंह पर जोर का तमाचा है.....क्यूंकि वो किसी की तकलीफ को आसानी से समझ कर उसकी सहायता करती है....या सिर्फ इसलिए क्यूंकि वो एक ''सिंगल मदर'' हैं और इसलिए सारे मर्दों की उस पर नज़र है....

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