Friday, August 8, 2014

सच कहना ....

मुझे नहीं पता की किसी ने मुझे ये बताया की सच बोलना चाहिये या सच बोलना अच्छी बात है....नहीं जानती मैं की इस तरह का कोई पाठ मैंने अपने स्कूल में कभी पढ़ा हाँ कभी कहानियां पढ़ी थी जिनमें यही बताया जाता था की सच बोलने वाला अच्छा इन्सान होता है और जो झूठ बोले वो गलत इन्सान ...... पर क्या सच में .... पता नहीं ...

स्कूल से कॉलेज तक कई बार सहेलियों को टीचर के मार और घर पर डांट न पड़े इसलिए अक्सर छोटा-मोटा झूठ बोला पर कभी ऐसा नहीं लगा न महसूस हुआ की मैं गलत किया झूठ बोल कर ....नहीं .....कभी नहीं लगा ...... वो जरूरतें थी आपसी सहयोग और अपनत्व के इसरार की .....
और अब जब झूठ और सच का असल मतलब ज़िन्दगी ने कदम कदम पर समझाया तो लगता है सच बोलना आसान है और सुकूं-मंद है ...... रात कि चंद घंटों की नींद के लिए या दिन भर की शांति के लिए सच बोलना और सच का साथ देना बहुत जरुरी है .....

कई बार लगता है अपना काम बनाने के लिए या किसी को खुश करने के लिए झूठ बोल लेना चाहिये....अपना काम भी हो जायेगा और किसी का दिल भी बहल जायेगा .... पर ये सब इतना आसान नहीं ....कोशिश की मैंने ये भी आजमाने की पर अपने सुकूं की मारी हूँ मैं .... जहाँ दिल गवाही नहीं करता वहां मैं सब हार भी दूँ तब भी ....दिल की सुनती हूँ .....
नहीं बोला जाता झूठ मुझे से और ये मेरी शायद सबसे बड़ी कमजोरी है ..... कई बारी अपने रिश्तों में कड़वाहट बना मेरा सच बोलना पर ...... मुझे वो भी सही लगा ....अगर रिश्ता सच्चा तो झूठ की जरूरत ही नहीं शायद .......

मेरी ज़िन्दगी खुली किताब की तरह है और वो किताब जिसमें लाग-लपेट और झूठ का पुलिंदा नहीं और शायद इसलिए भी मैं किताब जैसी ही हूँ .... जिसने जो पसंद किया उस पन्ने को मोड़ दिया और जो अपने मन का नहीं लगा या पसंद नहीं आया उस पन्ने को नोंच दिया, फाड़ दिया ..... पर नहीं .....कोई बात नहीं ....मैंने इसे भी स्वीकार किया क्यूंकि मैं किसी के भी साथ अपना रिश्ता पेन्सिल से लिखा नहीं बना सकती जिसे किसी की बुरी बात को बिगाड़ कर सही में बदल कर .... रिश्ता बनाया रखा जाए ...... बहुत साफ़ है मेरी रिश्तों को ले कर सोच ..... ‘’ जो साथ रहे ऐसे रहे जैसे मैं हूँ ....कभी मेरा आईना और मैं उसका आईना बन कर ‘’.  मेरे पास सच और सही के सिवा कुछ नहीं ....कोई लाग-लपेट , कोई झूठी तारीफें नहीं ..... मुझे किसी का साथ किसी जरुरत के लिए नहीं चाहिए .....चाहिये सिर्फ साथ के लिए ......


जब से लेखन से जुडी समाज को बहुत करीब से जानने लगी ......लोगो की सोच और उनके नज़रिए से बहुत वाकिफ हो चली हूँ अब और अब तो इस बात से भी भरोसा उठ गया की जो अच्छा होता है वो सच बोलता है और जो बुरा है वो झूठ बोलता है ....... ‘’लोग सिर्फ वो बोलते है जिससे उनका जीवन चलता है और वो झूठ है या सच इसको कोई नहीं आँकता’’ .....

लेखन से जुड़ने के बाद बहुत कुछ साफ़ दिखने लगा जो धुंधला दीखता है और कई बार जो देख कर भी दीखता नहीं था ......अपने आस-पास की उधेड़-बुन को देखती हूँ तो खीज़ होती है इस समाज से...यहाँ के लोगों से और इनकी ढकोसली बातों से ..... कई बार ऐसा हुआ जब भी मैंने सामाजिक मुद्दा ले कर अपनी बात कही है तभी मुझे लोगो की तरफ से मुफ़्त की सेवाएं मिलने लगती है, अचानक ही मेरी तारीफ और मेरी तकलीफे पूछने लगते है और इतना मीठा बोलने लगते है जैसे दुनिया का सारा मीठा खत्म हो गया उनकी जबां रसने में ....... उनका मकसद मुझे ये समझाना होता है की मैं न लिखूं .... लिखूं तो सिर्फ प्रेम लिखूं ....या काल्पनिकता लिखूं .....यानि सच न लिखूं ..... मुझे ये तक कहा गया की इतनी छोटी उम्र में क्यूँ इतना गुस्सा लिए फिरती हो .... अभी तो तुम्हें दुनिया देखनी है क्यूँ गुस्से से अपनी उम्र कम करती हो और बहुत कुछ है लिखने को वो लिखो.....ये सच का मुद्दा फांकने से कुछ न होगा .....

पर मैं भी जिद्दी हूँ और इस बात से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता की लोग मुझे ऐसे रोकते है ....मैं मानती हूँ ये दुनिया का चलन है ...’’सच को लोग कभी नहीं स्वीकारते क्यूंकि वो जानते है की जब उन्होंने सच को स्वीकार लिया तब वो झूठे साबित हो जायेंगे’’ ......  पर सच के साथ रहना मुश्किल नहीं बल्कि आसान होता है और ये खुद को महसूस होता है ..... सच कहना, सच को जीना और इसी में जीते जाना वैसा ही है जैसे सूरज की रौशनी को महसूस करना और चाँदनी का एहसास करना.....इन दोनों के होने का वजूद होना सच को जीने जैसा है .......

मुझे सच कहने में कोई डर नहीं बल्कि मैं असल ज़िन्दगी में सच कह कर अपने रिश्ते खो चुकी हूँ लेकिन अफ़सोस नहीं होता क्यूंकि झूठ के साथ मुझे कुछ नहीं चाहिये .....कोई रिश्ता भी नहीं ...अकेले होने का सुख झूठे रिश्तों के साथ होने से कहीं बढ़ कर है ......

मैं सच कहती हूँ .....कह सकती हूँ .... और कहना सही समझती हूँ मुझे मुझसे इतनी साफगोई रखनी है की मैं जब भी आईने को देखूं तो पुरे सबब से पुरे गुरुर से देखूं और खुद को यकीं दिला सकूँ की मैं हूँ और सही हूँ ..... शायद मेरे लिए ऐसा करना सबसे ज्यादा जरुरी है किसी और बात के ...... मैं नहीं जानती लोग अपनी ज़िन्दगी से क्या क्या उम्मीदें रखते है पर मैं अपनी ज़िन्दगी से अपने लिए बेहद सरल और साफ़ नज़र मांगती हूँ जिसमें वो हो जो असल है फिर चाहे वो मेरे लिए सख्त हो या मुश्किल ....... मेरी ज़िन्दगी संघर्ष से भरी रही है अब तक क्यूंकि मैंने सच को चुना और आगे भी ऐसे ही रहेगी इसका मुझे अंदेशा है लेकिन मैं इससे घबरा कर पीछे नहीं हटी न हटूंगी ......
मेरे ही शब्दों में ‘’ज़िन्दगी आसां होती तो दिलदार होती....सुकूं है ज़िन्दगी तुझसे मोहब्बत नहीं’’.....






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