साल 2015 की यूपीएससी परीक्षा में अव्वल आकर
सुर्खियों में रहीं टीना डाबी एक बार फिर चर्चा में हैं. इस बार उनका आत्मनिर्भर
होना लोगों को खटक रहा है. खास कर धर्म के ठेकेदारों और सोशल मीडिया पर अचानक आ बसे
देशभक्तों को. डाबी ने अपनी फेसबुक वॉल पर लिखा कि वह जल्द ही अतहर आमिर ख़ान के
साथ परिणय सूत्र में बंधने वाली हैं. टीना युवा महिलाओं के लिए प्रेरणा हैं और इस
फैसले से उन्होंने मिसाल कायम की है. जाति और धर्म के बंधन से ऊपर उठकर उन्होंने
अपने निर्णय को महत्व दिया है. 22 वर्षीय टीना यूपीएससी परीक्षा में पहला स्थान
प्राप्त करने वाली पहली दलित महिला हैं और इसलिए भी गैर-मजहबी शादी करना उस संघर्षशील
समुदाय के लिए गौरव की बात है जहाँ से वह आती हैं.
इस मामले में, आग में घी डालने का काम हिन्दू महा
सभा ने इस रिश्ते को “लव जिहाद” का मामला बताते हुए किया और डाबी के पिता को एक पत्र
लिख डाला. इस पत्र में हिंदू महासभा के राष्ट्रीय सचिव, मुन्ना कुमार
शर्मा ने इस शादी पर पुर्नविचार करने को कहा है. शर्मा ने कहा कि डाबी के पिता को अतहर
को सलाह देनी चाहिए कि वह ‘घर वापसी’ कर ले. इस पत्र के बाद सोशल मीडिया पर लगातार टीना को
आलोचना का सामना करना पड़ रहा है. लेकिन टीना ने बड़े ही सहज लहजे में सोशल मीडिया
पर इसका जवाब दिया. उन्होंने लिखा, “मैं एक खुले विचारों वाली आत्मनिर्भर महिला
हूँ और मुझे अपने निर्णय लेने का हक है. मैं अपनी च्वॉइस से बेहद खुश हूं और आमिर
भी. हमारे माता-पिता भी खुश हैं. लेकिन ऐसे लोग हमेशा होंगे, कम संख्या
वाले वे लोग जो किसी के गैर-मजहब के शख्स को डेट करने पर नकरात्मक टिप्पणियां
करते हैं. ऐसे लोग सिर्फ 5% होते हैं. बहुमत में लोग खुश हैं. आपने मेरी फेसबुक
टाइमलाइन पर देखा होगा कि ज्यादातर कमेंट्स आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं”. इससे
पहले भी टीना को आरक्षण का सहारा लेकर टॉप करने पर सोशल मीडिया पर लोगों ने ट्रोल
किया था.
हालांकि यह पहला मामला नहीं है इससे पहले भी बरखा
दत्त, सागरिका घोष, राना अयूब, कविता कृष्णन, अलका
लांबा आदि महिलाएं इस अभद्रता की शिकार हुई हैं. जो लोग किसी की बात-विचार या
व्यक्तित्व को नापसंद करते हैं वे लोग इसका विरोध गंदी गालियों या चरित्र-हनन के
रूप में करते हैं. जब भी सोशल मीडिया पर महिलाओं के फैसलों पर लोगों ने आपत्ति
जताई है और आलोचना की है तब इसका खामियाजा महिलाओं को सोशल मीडिया से दूर जा कर ही
चुकाना पड़ा है.
भारत, जहाँ लगभग 22% आबादी इंटरनेट का इस्तेमाल
करती है वहां इस प्रतिशत में महिलाओं की भागीदारी कितनी है यह ठीक-ठीक बता पाना
मुश्किल है लेकिन ग्रामीण भारत में फिलहाल दस में से एक महिला ही इंटरनेट का
इस्तेमाल करती है. ऐसे में जब इन्ही में से कुछ महिलाएं फेसबुक या ट्वीटर जैसे
सोशल मंच पर आती हैं तो उन्हें यह किसी उपलब्धि से कम नहीं लगता.
बिहार, वैशाली डिस्ट्रिक्ट के गाँव कुमार बाजिदपुर
की रहने वाली 49 वर्षीय आशा ललित पेशे से सरकारी टीचर हैं. ऐसे इलाके में जहाँ आज
भी मोबाइल नेटवर्क मिलने की समस्या है वहां आशा रिलायंस नेटवर्क पर रोजाना 1रुपया
खर्च करके पूरे दिन के लिए फेसबुक चलाती हैं. उन्होंने लम्बे समय तक बटन वाले फ़ोन
इस्तेमाल किये हैं इसलिय अब टच फ़ोन होने से उस पर लिखने में होने वाली दिक्कत के
कारण फेसबुक पोस्ट पर कमेंट करने से डरती हैं. लेकिन रोजाना 1रूपये का पैक
एक्टिवेट करा कर आस-पास की खबर रखती हैं.
आशा ने जब यह बात अपनी सहेली सुशीला को बताई,
जिन्हें अक्सर लिखने का शौक है तब वह भी जल्द ही फेसबुक पर आ गयीं. जब उनके लिखे
को लोग लाइक करने लगे तब वह उत्साहित होकर बताती हैं “जब लाइक होता है तो भरोसा हो
जाता है कि सही लिखा है”. लेकिन उस दिन उन्होंने फेसबुक छोड़ दिया जब उनके लिखी
किसी धार्मिक बात पर कुछ लोगों ने पोस्ट पर भद्दा कमेंट कर दिया. उस दिन के बाद से
आज तक वह फेसबुक पर लौट कर नहीं आ सकीं.
भारत में फेसबुक उपयोगकर्ताओं के बीच
स्त्री-पुरुष का अनुपात लगभग 75 और 25 का है. यह स्थिति तब है, जब
भारत फेसबुक यूजर्स के मामले में दुनिया में तीसरे स्थान पर है. इस हिसाब से आप कह
सकते हैं कि यहाँ भी पुरुषों का वर्चस्व देखने को मिलता है या फेसबुक पर पुरुषों
का चरम रिफ्लेक्शन मौजूद है.
सोशल मीडिया पर अभद्रता का सामना कर चुकीं आम आदमी
पार्टी की नेता अलका लांबा एक बातचीत में(तहलका) कहती हैं, “यह ट्रेंड ज्यादा
पुराना नहीं है. यह पिछले दो सालों से हो रहा है. इस बारे में मैंने साइबर क्राइम
ब्रांच में करीब 40 एफआईआर करवाई हैं. मैंने स्क्रीन शॉट, फोटो सब दिए.
इसे करीब दो साल होने जा रहा है, लेकिन साइबर क्राइम इस बारे में कार्रवाई करने
में नाकाम रहा है. साइबर क्राइम ने हाथ खड़े कर दिए कि हम कुछ नहीं कर सकते. दो
साल में चार्जशीट भी फाइल नहीं हुई. इससे लोगों के हौसले बढ़े हैं. हमारे फर्जी
अकाउंट बनाकर भी ट्वीट किए गए. हमें बदनाम करने की कोशिश की गई. हमारे खिलाफ
फैलाया गया कि मैं रैकेट चलाती हूं. ऐसे लोग हजारों की संख्या में हैं.”
खुद मेरा अनुभव भी इस बारे में यही कहता है कि इस
तरह के पुरूष और समूह, हमारे बढ़ते प्रयासों को कमजोर करने और कोशिशों को तोड़ने के
लिए, कभी सामूहिक रूप से तो कभी अकेले ही अभद्रता करते रहते हैं. ऐसी स्थिति में
हमें या तो उन्हें अवॉयड करना पड़ता है या लगातार उन्हें ब्लॉक करते जाना होता है. इंटरनेट
पर इस तरह के तत्व बड़ी संख्या में मौजूद हैं और हर महिला ऐसे बुरे अनुभव झेल चुकी
है.
हालांकि सोशल मीडिया आभासी दुनिया है लेकिन यही
दुनिया आज महिलाओं की आवाज़ बनी है जिसके चलते यहाँ भी महिलाओं से पुरुषों को उतनी
ही घृणा और विरोध है जितना बाहर है. एक ऐसा समाज जहाँ पुरुषों को महिलाओं का
बोलना, सोचना और अपनी बात कहना पसंद नहीं हैं वहां महिलाओं का उनसे आगे निकल जाना उन्हें
कमजोर होने का एहसास दिलाता है. ऐसे में उन्हें सिर्फ एक ही बात सूझती हैं कि
महिला पर ऐसा आरोप, टिप्पणी और तंज किया जाये के वो मानसिक रूप से परेशान हो कर
अपने बढ़ते कदम पीछे खींच लें.
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