Friday, October 10, 2014

दिल्ली लाइफ-5

पुलिस ..... कहीं की भी हो ...सही हो और अपनी ज़िम्मेदारी समझ के काम करे ऐसा...साधारणता देखने को नहीं मिलता... हाँ ...वो गैर-ज़िम्मेदार, क्रूरतापूर्ण और बददिमागी का काम करती हैं ये तो सामान्य बात है....

वैसे तो ये समाज के हित के लिए हैं और यही इनका परम-धर्म भी है परन्तु ...आज के परिदृश्य को देखते हुए सबसे पहले तो पुलिस ही अपने हाथ खड़े कर देती हैं कि ''भईया जो करो ...मरो...काटो ..खुद ही भुगतो...हम तक बात तब आये जब ..खुनम-खून हो जाये ...एक आध का सर फूट जाये...लालू-लाली भाग जाये....हाय-तौबा मच जाये... और खूब-पैसा हो तब हम तक आओ वर्ना मामला खुद ही सुलटाओ....

कुछ मामले ऐसे है जिनमें पुलिस की जबरन धोंस है जैसे अभी मेट्रो में हुए एक वाकये को बताती हूँ.....महिला डब्बे में कड़ी निगरानी रखी जाती है की कोई पुरुष उसमें न रहे....न ही उसके अंतिम छोर पर जहाँ से पुरुष डिब्बा शुरू होता है वहां पर भी निगरानी के लिए बीच-बीच में महिला-पुलिस आती रहती है.....

यात्रा के बीच ही निगरानी के लिए महिला कांस्टेबल के साथ उनके पुरुष कांस्टेबल भी साथ आये.....जैसे ही उन्होंने देखा की महिला डब्बे के अंतिम छोर पर लड़के टिक कर खड़े हैं तो ये सभी एक स्वर में चिल्लाने लगे....''उठो यहाँ से...दिखता नहीं है महिलाओं का डिब्बा है ये...उठो जल्दी...पीछे खिसको...उठो...उठो ...सुन लिया करो एक बार में .....अरे सुनाई नहीं दिया क्या ....उठ बे ''......
इतने में वो लड़के सकपका गये और एक उठते में ही लडखडा गया और गिर के फिर बैठ गया और बस यहीं उसकी शामत आ गयी....तुरंत महिला कांस्टेबल चिल्लाई...''निकल यहाँ से...एक बार में सुनता नहीं है...निकल''.... और पुरुष कांस्टेबल आया और हाथापाई करने लगा ....''निकल...निकल यहाँ से ...साले सुनते नहीं हो एक बार में ...तुम लोगो का ज्यादा दिमाग ख़राब हुआ है ....निकलो यहाँ से''..... और लडके को घसीट के बहार कर दिया गया ...... और बाद में उस लडके को बहुत सुनाया गया और शायद तमाचे भी लगाये गये....

पुलिस का ये व्यवहार सही था लेकिन उस लड़के के लिए नहीं .....इसमें उस लड़के की कोई गलती नहीं थी...उसने एक शब्द भी नहीं कहा और न ही उसने कुछ जानबूझ कर किया और उस पर .....पुलिस का ये रवैया ..... मेरी तरह कई बस देखते ही रह गये ......ये क्या था कोई समझ ही नहीं पाया .......

आये दिन आने वाली ख़बरों में पुलिस का बर्बर रवैया हैरान नहीं करता लेकिन परेशां बहुत करता हैं ख़ास कर महिलाओं के प्रति उनका व्यवहार बेहद कठोर है.....लेकिन ये जो घटना हुई उसके बाद ये बात सामने आती है की पुलिस कमज़ोर और सीधे लोगो को ज्यादा तंग करती है..... ''यहाँ पुलिस की धोंस और उसकी frustration उनके व्यवहार में थी साथ में ये भी दिख रहा था की वो ताकतवर है और किसी को भी दो-चार लगा सकते है''......

इस घटना के आलावा अभी राजीव चौक पर जो लड़कों की मार-पिटाई हुई उसमें पुलिस कहीं नज़र नहीं आई ...नज़र आई पर मूक दर्शक बन तमाशा देखती हुई .... ये भी पुलिस है जो दब्बू बन दूर से सब देखती रही क्यूंकि ये जानते थे बीच में पड़े तो खुद ही दो-तीन खा लेंगे इसलिए दूर रहे और बाद में फिल्मी पुलिस की तरह एन्र्टी ली....

*कभी पद और कभी कद ...दिमाग ख़राब कर देते है...

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