Friday, October 17, 2014

दिल्ली लाइफ-6

वैसे तो किसी के घर में झांकना ''गन्दी बात'' है फिर भी जब अचानक नज़र चली जाये तो क्या किया जाये....

शाम बालकनी में खड़ी लोगों को सुन रही थी की तभी दाहिने तरफ खुली खिड़की पर निगाह चली गयी दृश्य कुछ यूँ था.....पति महाशय बिस्तर पर लेटे हैं और उनके सामने उनकी धर्मपत्नी जी विराजमान है जो पलंग पर पैर लटका कर बैठी है....कुछ देर बाद पति महाशय अपना पैर पत्नी जी के कंधे पर रखते है और पत्नी जी दबाने लगती है....पत्नी जी ने मोबाइल फ़ोन उठा कर शायद मैसज पढ़ा और मुस्कुरा कर पति को भी सुनाया ......फिर पैर गले पर आता है और जब पत्नी हटाती है तो एक जोर की लात उसके गले पर पड़ती है और वो नीचे जा गिरती है.....

कराहती हुई पत्नी उठती है और गुस्सा जताती है तभी पति उठता है और उसका गला पकड़ कहता है ...तू इसी लायक है कमीनी ....चल पैर दबा ..... पत्नी रोती हुई फिर से पति के पैर दबाने लगती है ....

ये घटना मुझे विचलित कर रही है .....क्यूंकि ये व्यवहार अधिकार नही है ....वो महिला प्रेम से अपने पति का पांव दबा रही थी और अचानक ही उसका प्रेम उसपर हावी हो गया .....उसके बाद भी उसने उसी प्रेम के चलते चुप्पी साधी और फिर पैर दबाने लगी ....अब इसमें अच्छा क्या है ? उसके मन का क्या है ? उसका धर्म क्या है ? और उस रिश्ते में उसकी जगह क्या है ?

क्या ये करवाचौथ के बाद का ईनाम है ?.....या उसकी क़िस्त जो अभी-तभी-कभी भी मिलती है और मिलती रहती है....... मेरी पिछली कडवी करवाचौथ वाली पोस्ट पर कईयों के इमोशनल कमेंट मिले ....अच्छा है भाई ....आपकी इच्छा है ख़ुशी से व्रत करो पर ये आपकी बात है ''सबकी नहीं''...
एक मित्र ने कमेंट किया की महिलायें भी इस लायक है की उनको ''सबक सिखाया जाये'' ......यानी वो ये मानते है की महिलाएं ''मारी-पिटी जानी चाहिये''.....क्यूंकि वो काम ही ऐसा करती हैं.....ताज्जुब ये की महाशय पत्रकार हैं और ऐसी प्रगतिशील सोच रखते हैं...

पिछले दिनों लव-जेहाद को लेके जो ड्रामा देखने और पढने को मिला उसमें भी लडकियों को ही दोषी बताया गया और उनके लिए ''नये नियम-कानून'' दिए गये.....ये हाल लव मैरिज का भी है और अरेंज्ड मैरिज का भी...... फिर उसमे लड़की/महिला को दोषी क्यूँ बताया जाता है.....

''लड़की डोली में ससुराल जाती है और अर्थी में ही ससुराल से निकलती है'' ये कौनसे विचार हैं ? ''तू अब इस घर की नहीं रही जैसे भी रह पर तुझे अपने घर(ससुराल) में ही रहना है'' ये लाइन अभी भी सुनने को मिलती है और पढ़ी-लिखी हाई प्रोफाइल के लोगो में भी ..... बात वही है .....लिख-पढ़ के कितनी भी किताबें फाड़ डालो पर सोच मत बदलो न बदलने दो.... लकीर के फकीर बने रहो और उसी को घिसते रहो पीढ़ी-दर-पीढ़ी ......
तब तो रहने दो हो गया परिवर्तन...जितना लिखते-पढ़ते हो बेकार है ये सब छोड़ खेत जोतो....

कैसे परिवर्तन होगा ? कब होगा ? क्या परिवर्तन करने के लिए आसमां से कोई दूत उतरेगा या कोई दिव्य आत्मा प्रकट होगी या फिर कोई भगवान जन्म लेंगे ??

कौन जवाब देगा इसका ....???? कौन ???

*लव-जेहाद नामक नोटंकी अब सबके सामने है.... अब कहाँ है वो लोग जो इसके लिए लड़-मर रहे थे.....गड्डे में दबे हो या तड़ीपार हो लिये ....

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