Monday, February 16, 2015

‪गोडसे के बन्दर‬

देश में हो रही कर्मान्तरण की क्रांति के चलते गाँधी के तीन बन्दर भी उकता गये और वर्तमान की हवा में ये भी वीयर्ड हो गये. अब ये गाँधी के नही रहे. ये पाला बदल गोडसे के हो गये.....
बुरा न देखो-- ये अब बुरा देखता भी है और दिखाता भी है जो न देखे उसे व्हाट्सएप करता है..ट्वीटरीयाता है...फेसबुक पर अपलोड करता है...शेयर करता है और मेल भेजता है..

बुरा न सुनो--ये बुरा सुनते, सुनाते है वो भी ज़बरन ...इन्होंने रेडियों पकड़ा है जहां ''बन्दर की बात'' करते है ये ...अपनी बुक निकाला डाली ''मैं बन्दर बोल रहा हूँ'' इसके बाद भी चैन नही पड़ा तो voice call करवा रहें हैं मोबाइल पर...

बुरा न बोलो--ये तो गजब हो गये..बन्दर से हो गये 'साक्षी बन्दर' और लगे है बुरा बोलने में, बुलवाने में और तो और लोगों को प्रोत्साहित करते है की वो भी बुरा बोलें....इसके लिए बाकायदा क्लासिस चलायी जाती हैं जिसे बंघी क्लासिस कहते हैं.
इसलिए इन्होने गाँधी को त्याग कर गोडसे का दामन थामा है...क्यूंकि इसमें फल है. इससे यह राष्ट्रवादी कहलायेंगे, इनकी मूर्तियाँ चौराहों पर लग सकती हैं, स्कूल में बच्चों की किताबों में इनके योगदान को शिक्षा के रूप में शामिल किया जा सकता है, इनके मंदिर बनाये जा सकते हैं...मलतब खूब स्कोप है इनके फल खा के फूलने का. तो भाईलोगों एडवांस होते इस युग में जब इन्हें 'विचार वापसी' का स्कोप नही दिख रहा तब तक अपना भला इन्हें कर्मान्तरण में ही दिखा और चल पड़े गोडसे की ओर..... देखते हैं ये गोडसे के तीन बन्दर क्या गुल खिलाते हैं.

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